
बच के रहो; पाप नरक का आरक्षण है – Reservation of Hell
बच के रहो; पाप नरक का आरक्षण है – Reservation of Hell – हमें पाप और नरकों के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है जो हमें पापकर्म में संलिप्त होने से बचाता है।
पंडित (pandit) शब्द को प्रायः ब्राह्मण का पर्यायवाची समझा जाता है और ब्राह्मण के लिये ही प्रयोग भी किया जाता है किन्तु पंडित का तात्पर्य ब्राह्मण न होकर विद्वान होता है। चूंकि ब्राह्मण में विद्या की अधिकता होती है इस कारण ब्राह्मण को ही पंडित से भी अलंकृत किया जाता है। यहां विद्या का तात्पर्य अध्यात्म विद्या है न कि सांसारिक शिक्षा। इस श्रेणी में पंडित अर्थात ब्राह्मण अथवा कर्मकांडी ब्राह्मण विषयक विमर्श किया गया है।
बच के रहो; पाप नरक का आरक्षण है – Reservation of Hell – हमें पाप और नरकों के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है जो हमें पापकर्म में संलिप्त होने से बचाता है।
व्रतोपवास में क्षौर कर्म विचार व निषेध – kshaur karma : सामान्य क्षौर विधान से अतिरिक्त भी कुछ विशेष विचार होता है यथा व्रत-उपवास-श्राद्धादि में क्षौर की आवश्यकता, यात्रा व अन्य कालों में क्षौर का निषेध जिसकी चर्चा इस आलेख में प्रस्तुत है
क्षौर कर्म विचार – kshaur karma in hindi : क्षौर कर्म का तात्पर्य मात्र बढे हुये केशों से मुक्ति पाना नहीं होता अपितु सनातन में क्षौर कर्म के आचरण का भी विशेष विधान व नियम है जो शास्त्रों में वर्णित है।
बुरा न मानो होली है ~ Bura na mano holi hai : होली भारत के एक प्रमुख पर्व है और हर्षोल्लास पूर्वक देशभर में यह मनाया जाता है। किन्तु भारत में भी एक विशेष वर्ग है जो विदेशी चश्मा पहनकर निर्लज्जता पूर्वक भारतीय संस्कृति, पर्व-त्योहारों पर भी आक्षेप-प्रक्षेप करता रहता है।
पूजा विधि विधान – puja vidhi : सभी पूजा में पवित्रीकरण, दिग्बंधन, संकल्प, स्वस्तिवाचन, कलश स्थापन, प्रधान पूजा, अंग पूजा, हवन आदि ही किये जाते हैं। यदि अंतर की बात करें तो संकल्प में किञ्चित अंतर होता है एवं प्रधान पूजा व अंग पूजा के नाम मंत्रों में परिवर्तन होता है।
आधुनिकतावादी का देखो छल बल, रच रहे अंधविश्वास का दलदल : यदि कोई अंधविश्वास बोले तो उससे पूछो अंधविश्वास क्या है ? और जिसे विषय को तुम अंधविश्वास कह रहे हो वह अंधविश्वास है ये सिद्ध करो। यदि तुमने ऐसा प्रश्न मात्र कर दिया तो ये सर पर पांव रखकर भागने लगेंगे।
पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं – punarjagran se aap kya samajhte hain : एक दिन में एक बार सोना-और-जगना निर्धारित है और इसमें पुनः का प्रयोग नहीं होगा किन्तु यदि दो बार हो तो पुनः प्रयुक्त होगा। इस प्रकार दुबारा सोने पर पुनर्शयन कहा जायेगा और पुनः उठने पर पुनर्जागरण।
शास्त्रों में अस्पृश्यता और वैधानिक समाधान से अस्पृश्यता का अंत – asprishyata kya hai : अस्पृश्यता की यहां जो व्याख्या की गयी है वह उस अस्पृश्यता से भिन्न है जिसका संविधान निषेध करता है और राजनीतिक रूप से कही-समझी जाती है। जिस अस्पृश्यता को राजनीतिक रूप से अपराध कहा गया है वह शास्त्रोक्त रूप से भी निषिद्ध ही है। किन्तु शास्त्रों में अस्पृश्यता की जो व्याख्या है वह राजनीतिक अस्पृश्यता की परिधि से बाहर है, आध्यात्मिक जीवन का अंग है इसके कुछ अपवाद भी हो सकते हैं।
बिना पंडित के स्वयं पूजा, अनुष्ठान विधि, हवन करना कैसे सीखें – bina pandit ke karmkand : शास्त्रोक्त विधि के अनुसार सभी कर्मों में (नित्यकर्म को छोड़कर) ब्राह्मण (कर्मकांडी) की आवश्यकता होती ही है। उपदेश (आज्ञा) देने से लेकर दान-दक्षिणा-भोजन ग्रहण करने के लिये और सम्पूर्णता का वचन देने के लिये कर्मकांडी ब्राह्मण अनिवार्य होते हैं और यही शास्त्रों में बताया गया है। यदि कोई शास्त्रोक्त कर्म बिना पंडित (ब्राह्मण-कर्मकांडी) के करते हैं तो वह शास्त्र विधि से रहित होता है और वह कल्याणकारी तो कदापि नहीं होता किन्तु शस्त्रोलन्घन का दोष प्रदान करने वाला होता है।