पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं – punarjagran se aap kya samajhte hain

पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं - punarjagran se aap kya samajhte hain

वर्तमान में पुनर्जागरण की चर्चा भी बड़े स्तर पर होने लगी है और कुछ गतिविधियां भी देखने को मिलती है। हमें यह समझना बहुत आवश्यकता है कि पुनर्जागरण है क्या जब तक पुनर्जागरण को भलीभांति नहीं समझेंगे तब तक यह भी ज्ञात नहीं हो सकता है कि पुनर्जागरण कैसे होगा ? पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं (punarjagran se aap kya samajhte hain) ये मुख्य कारण बनेगा की आपका पुनर्जागरण होगा अथवा नहीं। यहां सबसे पहले यह चर्चा की गयी है कि हमें मूर्ख कौन बना रहा है तत्पश्चात पुनर्जागरण क्या है और कैसे होगा ?

मूर्ख होना एक भिन्न विषय है और जो मूर्ख होता है उसे मूर्ख बनाने की आवश्यकता नहीं होती है। मूर्ख उसे ही बनाया जाता है जो मूर्ख नहीं होते हैं किन्तु जब यह ज्ञात होता है तो बहुत ही लज्जाप्रद अथवा क्रोधोत्पादक कुछ भी हो सकता है। वर्त्तमान विश्व में ऐसे षड्यंत्रकारियों के बड़े-बड़े समूहों के गिरोह हैं जो सामान्य जनों को मूर्ख बनाते रहते हैं और यदि पुनः कुछ और करना हो तो पुनः मूर्ख ही बनाते हैं। आइये इस विषय को गंभीरता से समझते हैं कि हमें किस प्रकार मूर्ख बनाया जाता है।

हम जो चर्चा करेंगे उसमें आगे बढने से पहले एक उदाहरण को समझना आवश्यक है और वो उदाहरण विज्ञापन से संबंधित है। हम किसी विज्ञापन की सीधी चर्चा तो नहीं कर सकते तथापि नाम स्पष्ट किये बिना तो कर ही सकते हैं। एक विज्ञापन में बताया जाता है इनको जमाने से पीछे चलने दो आप चुनो नया …. ; तो दूसरा विज्ञापन बताता है दशकों से, सदियों से देश का भरोसा।

देश की राजनीति को ही लीजिये दोनों ही पक्ष एक-दूसरे को आरक्षण विरोधी, संविधान विरोधी कहते हैं। सच्चाई क्या है ये बताना जिस मीडिया/राजनीतिक विश्लेषकों का काम है वो वो ऐसी कोई चर्चा नहीं करते जिससे जनमानस भ्रमित न हो; वो अपनी दुकान चलाने के लिये झूठ का ही साथ देते हैं क्योंकि झूठा पक्ष बहुत कुछ देता भी है। राजनीतिक बहस में सोरोस का नाम चल रहा है जिसने स्वयं ही बहुत डॉलर देने की बात किया था ये कोई आरोप मात्र नहीं है।

राजनीतिक बहस में ही एक राष्ट्रवाद को देश-संस्कृति के लिये आवश्यक सिद्ध करता है तो दूसरा ऐसा भी पक्ष है जो सिरे से अस्वीकार करता है, कहता है राष्ट्रवाद नामक कुछ होता है नहीं है किन्तु, इस पर अड़ा भी नहीं रहता, कभी स्वीकार भी करता है और जब स्वीकार करता है तो कहता है राष्ट्रवाद से युद्ध होता है, नरसंहार होता है, विनाश होता है, आदि-इत्यादि।

इसी में एक पक्ष देश के संस्कृति की बात करता है और देश की संस्कृति को प्राचीनता से जोड़कर बताता है तो दूसरा पक्ष है तो प्राचीनता का परित्याग करके भाईचारा-गंगा जमुनी तहजीब की बात करता है।

अब आप समझ चुके होंगे कि यहां दूसरा पक्ष जो है वो सदैव झूठ का ही सहारा लेता है, बारम्बार झूठा सिद्ध होता है, न्यायालय द्वारा भी झूठा सत्यापित होता है और क्षमायाचना भी करता है किन्तु झूठ का सहारा लेना नहीं छोड़ता क्योंकि इसका अस्तित्व ही झूठ है। इस पक्ष का उस सोरोस से भी संबंध बताया जा रहा है और मीडिया का भी। इस पक्ष की एक और विशेष पहचान है :

कर्मकांड सीखें : Karmkand Sikhen part 2
  • ये आतंकवादियों की फांसी/मृत्यु पर रोते हैं, आतकवादियों को मास्टर का बेटा, दर्जी का बेटा कहते हैं, उसका बचाव करते हैं किन्तु सेना को अत्याचारी कहते हैं, बलात्कारी कहते हैं।
  • ये पत्थरबाजों/उपद्रवियों को मासूम बताते हैं, भटके हुये नौजवान कहते हैं किन्तु पुलिस को आततायी कहते हैं।
  • ये अतिक्रमण करने वालों का पक्ष लेते हैं किन्तु जो अतिक्रमण को हटाये उसकी निंदा करते हैं।
  • ये देश के घुसपैठियों का पक्ष लेते हैं किन्तु जब पड़ोसी देशों के पीड़ित अल्पसंख्यकों को प्रश्रय देने हेतु कानून बनाया जाता है तो उसका विरोध करते हैं।

किन्तु इन्हें यदि हम देश की आतंरिक गतिविधि समझें तो यह भ्रम के अतिरिक्त और कुछ नहीं होगा। वास्तविकता यह है कि इसके साथ एक और शब्द जुड़ा है जो नया है किन्तु उसका अस्तित्व दशकों से है और वो शब्द है डीप स्टेट।

डीप स्टेट का तात्पर्य है जो सरकार होती है वो मुखौटा मात्र का अस्तित्व रखे। वास्तविक सत्ता जो दिखाई तो नहीं देगी किन्तु निर्णय करेगी, नीति बनायेगी वो डीप स्टेट है। अर्थात डीप स्टेट पूरी दुनियां पर शासन करने की महत्वाकांक्षा रखने वालों का गैंग है और ये अपने एजेंट सभी देशों में बनाकर काम करते हैं। ऊपर दूसरे पक्ष के बारे में जो बातें बताई गयी है वो उसका कारण डीप स्टेट का एजेंट होना ही है।

  • सोचकर देखिये क्या दीपावली का पटाखा ही प्रदूषण क्यों फैलाता है ?
  • सोचकर देखिये यदि पराली जलाने से ही प्रदूषण होता है तो वहां क्यों नहीं होता जहां पराली जलाये जाते हैं?
  • सोचकर देखिये जीव हिंसा बलि में ही क्यों होती है, सड़कों पर जो टांगे रहते हैं, नाक बंद किये बिना चलना कठिन होता है उसमें जीव हिंसा क्यों नहीं होती ?
  • सोचिये धन की बर्बादी उन भोजों में ही क्यों होती है जो पारंपरिक रूप से किये जाते हैं, एक पार्टी में 10-20 भोज के बराबर खर्च करने पर भी उसमें धन की बर्बादी क्यों नहीं दिखती ?
  • सोचिये विदेशियों के अनुसार फीता काटने में, कैंडल जलाने में कोई सांप्रदायिकता क्यों नहीं होती और भारतीय विधान से स्वास्तिक बनाने पर, पूजा करने पर क्यों सांप्रदायिकता हो जाती है ?
  • सोचिये रामायण, गीता आदि भारत के ग्रन्थ हैं फिर वो भारत में सांप्रदायिक क्यों हैं, इन ग्रंथों को तो समाप्त करने के लिये बड़े-बड़े षड्यंत्र किये जा रहे हैं, जलाये जाते हैं, फाड़े जाते हैं, प्रश्न यह है कि भारत में भारत के ग्रंथों से ही समस्या कैसे हो सकती है ? इस स्थिति को ऐसे भी समझें की दूसरे की मां का सम्मान क्या अपनी मां को गाली देकर किया जाता है ?

उपरोक्त कुछ बिन्दु ही चर्चा के मुख्य आधार हैं और हमें ऐसी चर्चा क्यों करनी पर रही है इसका कारण भी समझना आवश्यक है ?

वर्त्तमान समय में जहां देखें चाहे वह राजनीति हो, मीडिया हो, फिल्म-धारावाहिक हो सर्वत्र सनातन पर आघात किया जा रहा है, चोट किया जा रहा है। सदैव धर्म को अन्धविश्वास, आस्था मात्र सिद्ध करेंगे, सांप्रदायिकता/कट्टरता कहकर निंदा करेंगे या उपहास उड़ायेंगे। और जब इनकी निंदा की जायेगी तो कहेंगे मैं भी हिन्दू हूँ। ये हिन्दू को भी कट्टर इसलिये कहते हैं क्योंकि ये जो कट्टर हैं उनकी कट्टरता को संरक्षण देना चाहते हैं।

यदि हिन्दू कट्टर होता तो अपने देश के छोटे से भूभाग में सिमट कर न रहता और उसमें भी पत्थड़ न खाता, टुकड़े-टुकड़े नहीं होता, खतड़े में नहीं होता, जहां-तहां पलायन करने को विवश न होता।

ये जो विश्वव्यापी गैंग है वह अपने अनुसार ही पूरी दुनियां को सोचने-बोलने के लिये विवश करना चाहती है। वो जो बोलने से मना करे आप वो नहीं बोल सकते किन्तु जो बोलने का अधिकार उनको नहीं है वह भी वो बोल सकते हैं और यदि उन्हें आप गलत कहो तो आपको रूढ़िवादी, अंधविश्वासी कहेंगे। इसका उदाहरण भी है :

कोरोना से पूरी दुनियां परिचित है किन्तु क्या आपको पता है कि कोरोना के संबंध में बोलने की सीमा उन्होंने निर्धारित कर रखा था ?

आप किसी दवाई के बारे में नहीं बोल सकते क्योंकि वो मना करते हैं। आप किसी बीमारी के इलाज के बारे में नहीं बता सकते क्योंकि वो मना करते हैं। किन्तु वो आपको क्या-क्या बता सकते हैं क्या आपने कभी ये विचार किया है ?

उनको सनातन धर्म के बारे में कुछ ज्ञात तो नहीं है किन्तु आपको धर्म का ज्ञान देते रहते हैं। उनके एजेंट आपको फिल्म, धारावाहिक, मीडिया आदि सभी माध्यमों से धर्म का ज्ञान दे रहे होते हैं। आपको ये बात अतिशयोक्ति लगती होगी किन्तु हम इसका भी उदाहरण देकर सिद्ध करेंगे।

  • वो आपको बता रहे हैं कि पत्नी यदि पति की लम्बी आयु के लिये कड़वा चौथ करती है तो पति को भी करना चाहिये।
  • वो आपको बता रहे हैं कि पति गुरु नहीं होता है, पत्नियां ने सदियों से पति को प्रणाम करती रही है अब पति ही पत्नी को प्रणाम करे अथवा पत्नी प्रणाम करना बंद करे।
  • वो आपको बता रहे हैं कि घरों में बड़ी-बड़ी प्रतिमा रखनी चाहिये।
  • उन्होंने ही आपको कब्र पर चादर चढाना, प्रणाम करना, पैसे चढ़ाना सिखाया।
  • उन्होंने आपको अपना तिलक, अपनी शिखा, अपना यज्ञोपवीत त्याग करवा दिया, परिधान की चर्चा तो बहुत छोटी सी है।
  • उन्होंने आपको ऐसा बना दिया कि आप नित्यकर्म के बारे में कुछ नहीं जानते करना तो दूर की बात है।
  • लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने आपको साईं की पूजा करने के लिये कहा।
  • उन्होंने आपको बताया कि पति-पत्नी को एक-दूसरे का नाम लेकर पुकारना चाहिये और आपने सीख भी लिया।
  • उन्होंने आपको खड़े-खड़े, चलते-फिरते, जूते-चप्पल पहनकर खाना सिखाया और आपने सीख भी लिया।
  • उन्होंने आपको बोतल में दो-दो घूंट करके पानी पीने के लिये कहा और आप पीने लगे।
  • अब वो आपको जूठे हाथ रहना सीखा रहे हैं और आप वो भी सीखते जा रहे हैं। धोने के स्थान पर पेपर आदि से हाथ को पोंछ लेना जूठा रखना ही है।
  • विवाह किये बिना भी लड़की-लड़का एक साथ रह सकता है ये उनका ही कहा हुआ है जो आपने भी स्वीकार कर लिया है इसे “लीव एन्ड रिलेशनशिप” कहते हैं।
  • वो समलैंगिक विवाह थोपने का प्रयास कर रहे हैं और बीते वर्षों में तो ऐसा लग रहा था कि न्यायपालिका मान्यता देने जा रही है; ये संयोग है कि मान्यता नहीं दे पायी।

इस तरह से अनगिनत तथ्य हैं जो धर्मविरुद्ध हैं किन्तु वो आपसे करवाने लगे हैं। ये एक-दो दिन, महीने, वर्ष में नहीं हुआ है दशकों में हुआ है। संचार-साधनों और सोशल मीडिया के आने से इसकी गति और भी कई गुना बढ़ गयी है।

वो आपके बच्चों को विद्रोही बना रहे हैं और आपके बच्चे ही आपके विरुद्ध हो जाते हैं। वो आपके बच्चों को सीखा रहे हैं कि विद्रोह करके मनमर्जी से विवाह करो, मनमर्जी से तलाक दो। आप अपना बचपन याद कीजिये बड़े क्या आपके दुश्मन थे ? यदि आपके माता-पिता आपके दुश्मन थे तो क्या आप अपने बच्चों के दुश्मन हैं ? यदि आप अपने बच्चों के दुश्मन नहीं हैं तो बच्चों को कौन भ्रमित करता है और उसके मन में यह स्थापित कर देता है कि परिवार, समाज उसका दुश्मन है ?

वो सीधे-सीधे आपको सनातन का विरोध करने के लिये नहीं कह सकते इसलिये आपको ब्राह्मण का विरोध करना सिखाते हैं, सनातन ग्रंथों का अपमान करने के लिये प्रेरित कर रहे हैं, कर्मकांड को अंधविश्वास कहते हैं। यदि आप उनकी किसी बात को नहीं स्वीकारते हैं तो वो आपको अंधविश्वासी कहेंगे, रूढ़िवादी कहेंगे और आपको वो गाली के समान लगती है, आप डर जाते हैं और ये डर ही सभी समस्याओं की जड़ है।

आधुनिकता और वैज्ञानिकता नामक जो वायरस है वो बहुत ही भयावह है और इसने हमें गंभीर रूप से पीड़ित कर रखा है। इस प्रकार की चर्चा करने के लिये भी बहुत साहस की आवश्यकता होती है। इस वायरस के उन्मूलन की आवश्यकता है यदि इस वायरस का उन्मूलन नहीं करेंगे तो ये आपकी धर्म और संस्कृति को समाप्त कर देंगे। यदि आप यह कहना चाह रहे हैं कि नहीं कर सकते तो ऊपर ढेरों बिन्दु बताये गए हैं जो धर्मविरुद्ध है किन्तु प्रचलित हो गया है।

इन मूर्ख बनाने वालों की सही-सही पहचान करने का एक तरीका है जिसके द्वारा उन्हें सरलता से जाना-समझा जा सकता है। हम वाममार्ग के विषय में जानते हैं किन्तु वाममार्ग का तात्पर्य है मुख्य मार्ग से पृथक विधि द्वारा भी आत्मकल्याण करना। आत्मकल्याण का मुख्य मार्ग वैदिक मार्ग है किन्तु आत्मकल्याण का जो वैदिक नहीं है उससे पृथक है वो वाममार्ग है। किन्तु हम यहां वामपंथ का प्रयोग करेंगे जो इससे पृथक एक अन्य राजनीतिक विचारधारा के रूप में जानी जाती है और इसका उस वाममार्ग से कोई संबंध नहीं है।

वामपंथ का तात्पर्य है; मुख्य पंथ जो सैद्धांतिक रूप से स्वीकृत है, जो करना चाहिये और नहीं करना चाहिये उसे अस्वीकार करने वाला पंथ। एवं अपनी सत्ता को सिद्ध करने के लिये वामपंथियों ने ही दक्षिणपंथ नामक शब्द भी गढ़ा जिसके कारण दो विचारधारा में तुलना की जाती है संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया जाता है, अर्थात वामपंथ को भी मान्यता मिलती है। किन्तु यदि शाब्दिक व्याख्या मात्र से वामपंथ को समझने का प्रयास करें तो अपर्याप्त होगा। वामपंथ एक विश्वव्यापी विचारधारा बन चुकी है और पूरे विश्व को अपने अनुसार चलाना चाहती है, नियंत्रित करना चाहती है।

  • वामपंथ पूरी दुनियां पर नियंत्रण करना चाहती है इसका तात्पर्य है कि दुनियां पर इसका नियंत्रण नहीं था और न है।
  • वामपंथ पूरी दुनियां को अपने अनुसार चलाना चाहती है इसका तात्पर्य है कि दुनियां वामपंथ के अनुसार न तो पहले चलती थी और न अब चल रही है।

किन्तु एक कटुसत्य यह है कि वैचारिक रूप से इसने अपना विशाल साम्राज्य स्थापित कर लिया है। वर्त्तमान में एक ऐसी प्रातिभासिक दुनियां भी बन गयी है जो जनमानस की सोच को प्रभावित करता है और वामपंथ ने इसपर अपना नियंत्रण स्थापित कर रखा है। और यही कारण है कि आप विभिन्न माध्यमों से जो कुछ भी देख रहे हैं, सुन रहे हैं वो सब वही नियंत्रित करता है। ये सब उसके नियंत्रण में है इसका भी एक उत्कृष्ट उदाहरण देना आवश्यक है।

ऐसा कोई भी आलेख, विडियो वायरल नहीं हो पाता है जिसमें शास्त्रोक्त अर्थात प्रामाणिक तथ्य हो किन्तु जिसमें अप्रामाणिक तथ्य होते हैं, शास्त्र विरुद्ध तथ्य होते हैं वो वायरल भी होते हैं। जो लोग आलेख लिखते हैं, विडियो बनाते हैं वो इस विषय को भली-भांति समझते हैं। शास्त्रोक्त विधान से बिना पंडित (कर्मकांडी ब्राह्मण) के कोई धर्मकृत्य नहीं हो सकता किन्तु आप स्वयं ढूंढकर देखिये ऐसे अनेकानेक आलेख और विडियो मिलेंगे जिसमें बिना पंडित के पूजा-हवन इत्यादि करने की चर्चा की जाती है और वो अधिक लोगों तक पहुंचाई भी जाती है।

सत्य आत्मकल्याण का मार्ग तो है ही, किन्तु दुनियां में भी शांति रहे, लोग सुख प्राप्त करें इसके लिये भी अनिवार्य है किन्तु ये वामपंथ सत्य का अस्तित्व ही अस्वीकार करता है, असत्य के सहारे ही सभी गतिविधि चलाता है। आपको क्या खाना चाहिये, क्या पीना चाहिये, क्या खरीदना चाहिये, कहां जाना चाहिये ये सब कुछ बड़े स्तर पर वामपंथ ही नियंत्रित करता है। अर्थात आपकी सोच को नियंत्रित करने का प्रयास करता है आपको क्या करना चाहिये ये वही निर्धारित करता है।

वो आपकी सोच को प्रभावित करने में बहुत अंशों तक सफल होता है यही कारण है कि आपको जो नहीं करना चाहिये वो करते हैं और जो करना चाहिये वो नहीं करते हैं। वामपंथ का वैचारिक साम्राज्य कितना बड़ा है इसे समझने के लिये भी कुछ वास्तविक उदाहरणों को समझना अपेक्षित है :

दो समान कांडों में से एक कांड विश्वव्यापी समाचार बन जाता है और दूसरा क्षेत्रीय समाचार भी नहीं बन सकता। एक बलात्कार दलित का हो जिसमें आरोपी सवर्ण हो तो वो विश्वव्यापी समाचार बन जाती है, बलात्कार न भी हुआ हो तो भी संसद तक में बलात्कार-बलात्कार कहकर झूठ बोला जाता है और इसका उदाहरण हाथरस वाली घटना है। किन्तु यदि पीड़ित सवर्ण हो और उत्पीड़क दलित हो तो वो क्षेत्रीय समाचार भी नहीं बन पाता। वहीं पीड़ित यदि दलित ही हो किन्तु उत्पीड़क यदि विधर्मी हो तो भी उसकी चर्चा नहीं होती, वह समाचार नहीं बनता है।

क्या सवर्णों का उत्पीड़न नहीं होता है ? अरे सवर्णों का तो कानूनी रूप से भी उत्पीड़न किया जा रहा है।

ये आपकी सोच को किस हद तक प्रभावित करते हैं, अपना विचार थोप चुके हैं इसका अगला उदाहरण भी अद्वितीय है :

यदि आपकी आयु 40 वर्ष से अधिक है और आपने अपने बाबा-नाना को देखा है तो स्मरण कीजिये वो पैंट-पैजामा पहनने की बात सपने में भी नहीं सोचते थे धोती ही पहनते रहे, अगली पीढ़ी को लज्जा आती थी। किन्तु अगली पीढ़ी को देखिये विवाह में भी धोती पहनना नहीं चाहती है। उसे धोती पहनने में ही लज्जा की अनुभूति होती है। इसका क्या कारण है कभी सोचे भी हैं ? सोच भी नहीं सकते क्योंकि सोच को वामपंथियों ने अपहृत कर रखा है।

समाधान क्या है

पुनर्जागरण शब्द वर्त्तमान में बड़े स्तर पर बोला-सुना जा रहा है। पुनः जागरण अर्थात फिर से/दुबारा जगना पुनर्जागरण का अर्थ होता है। सभी जीव प्रतिदिन सोते और जगते है अर्थात प्रत्येक दिन जगते हैं किन्तु उसे पुनर्जागरण नहीं कहा जाता। किन्तु यदि दिन में फिर से कोई सो जाये और दुबारा उठे तो उसे पुनर्जागरण कहा जायेगा। अर्थात एक दिन में एक बार सोना-और-जगना निर्धारित है और इसमें पुनः का प्रयोग नहीं होगा किन्तु यदि दो बार हो तो पुनः प्रयुक्त होगा। इस प्रकार दुबारा सोने पर पुनर्शयन कहा जायेगा और पुनः उठने पर पुनर्जागरण।

किन्तु पुनर्जागरण का प्रयोग इस अर्थ में नहीं किया जाता है। तथापि वही वामपंथी विचारधारा किसी विशेष परिवर्तन के लिये पुनर्जागरण का प्रयोग करती है जो उचित प्रयोग नहीं है किन्तु झूठों का क्या कुछ भी बोलते रहते हैं, कुतर्क रचते रहते हैं। धर्म-संस्कृति के क्षेत्र में शंकराचार्य ने जो किया था वो पुनर्जागरण था। पुनर्जागरण का वास्तविक प्रयोग समाज-संस्कृति-क्षेत्र आदि के परिप्रेक्ष्य में किया जाता है जो किसी कारण से पिछड़ गया था किन्तु पुनः आगे बढ़ने लगा।

अब यदि हम पुनर्जागरण के इच्छुक हैं, तो हमें प्रथमतया अपनी वास्तविकता को भी जानना-समझना आवश्यक होता है। यदि हमें अपनी वास्तविकता ही ज्ञात न हो तो पुनर्जागरण नहीं होगा एक नयी विकृति होगी और इसका भी एक उदाहरण प्रस्तुत करना आवश्यक है :

तीर्थ क्षेत्रों के होने वाले विकास को पुनर्जागरण से जोड़कर देखा जाता है किन्तु उस विकास का परिणाम क्या है ये किसी ने विचार नहीं किया। तीर्थ क्षेत्रों के विकास में पर्यटन और आर्थिक गतिविधि को केंद्रबिंदु में रखा गया और इस कारण तीर्थक्षेत्रों का विकास तो अवश्य हुआ किन्तु पुनर्जागरण नहीं एक विकृति उत्पन्न हो गयी वो विकृति है तीर्थयात्रा पर्यटन में परिवर्तित हो गयी। यदि आपने अनेकों तीर्थों की यात्रा किया है और इसपर सहमत नहीं हैं तो आपको तीर्थयात्रा के बारे में जानना-समझना आवश्यक है।

यदि पर्यटन में परिवर्तित हुये तीर्थयात्रा को पुनः तीर्थयात्रा के अनुसार करना प्रारम्भ किया जाये तो यह पुनर्जागरण होगा।

इसी प्रकार से भारत की संस्कृति में ऐसे कई विकृति उत्पन्न हो गयी है जिसको समझे बिना सांस्कृतिक पुनर्जागरण कहना सर्वथा अनुचित होगा। वर्त्तमान में जो पुनर्जागरण संबंधी चर्चा होती है उसमें सांस्कृतिक पुनर्जागरण ही तात्पर्य होता है किन्तु थोड़ा सोचिये क्या क्या अंग्रेज बनकर भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक पुनर्जागरण की डींग हांकना हास्यास्पद नहीं है।

यदि आप सनातन के पुनर्जागरण में अपना योगदान करना चाहते हैं तो आपको सर्वप्रथम स्वयं का पुनर्जागरण करना होगा, धर्मशास्त्रों का अध्ययन करना होगा और यदि उनका अध्ययन किये बिना आप पुनर्जागरण की बात करेंगे तो वो रट्टूमल तोते वाली घटना के समान सिद्ध होगी।

जब तक आप अपनी संस्कृति, अपने धर्म को जानेंगे नहीं तो क्या पुनर्जागरण करेंगे ? मात्र मंदिरों का निर्माण करना, विकास करना ही पुनर्जागरण समझते रहेंगे और इतने में ही सिमटे रहेंगे। उन वामपंथियों से अपनी सोच को मुक्त कराने का भी एक ही उपाय है और वो है सांस्कृतिक पुनर्जागरण। जब सांस्कृतिक पुनर्जागरण होगा तो जो वामपंथी सीना चौड़ा करके दहाड़ते हैं वो छुपते फिरेंगे।

पुनर्जागरण की दिशा में आगे बढ़ने से पूर्व आपको शास्त्रों का सम्यक अवलोकन करना आवश्यक है, धर्म-कर्मकांड को गंभीरता से समझना अनिवार्य है। वर्त्तमान में भौतिक रूप से जितने ग्रन्थ-सामग्री मिलते हैं उससे अधिक ऑनलाइन मिलते हैं। किन्तु इसमें यह आवश्यक है कि वो मूल ग्रन्थ हो क्योंकि सामग्रियां भी उसी सोच से प्रभावित होती है जो आपको प्राप्त होती है।

इसके साथ ही अपने बच्चों को यह ज्ञान बचपन से देना प्रारंभ करना होगा। वर्त्तमान पीढ़ी इस कारण से भ्रमित हो गयी है क्योंकि इसे बचपन से नौकरी और नौकरी मात्र पढ़ाया गया है। किन्तु यदि अगली पीढ़ी को धर्मशास्त्रों का भी ज्ञान दें तो पुनर्जागरण संभव हो सकता है। जो पढ़ते हैं उसे कितना समझ पाये हैं इसकी जांच भी आवश्यक होती है। इस कारण जो अध्ययन करें उससे संबंधित प्रश्नों को भी हल करें। बच्चों को भी जो बतायें उससे संबंधित प्रश्न भी हल करने के लिये कहें।

वर्त्तमान में ऑनलाइन (मॉक) टेस्ट एक विशेष प्रक्रिया है जिसमें वैकल्पिक प्रश्नों को हल करके जांच प्रक्रिया पूर्ण की जाती है। धर्म-कर्मकांड संबंधी जांच हेतु ऑनलाइन टेस्ट की व्यवस्था कर्मकांड सीखें वेबसाइट https://karmkandsikhen.in/ पर की गयी है जहां आप स्वयं के धर्म-कर्मकांड ज्ञान की भी जाँच कर सकते हैं और बच्चों के ज्ञान की भी।

नीचे कुछ ऑनलाइन टेस्ट दिये गये हैं जिसमें भाग लेकर धर्म-कर्मकांड संबंधी ज्ञान की जांच हो सकती है।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


Discover more from कर्मकांड सीखें

Subscribe to get the latest posts sent to your email.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *