यहां दो प्रश्न हैं एवं इसके और भी अनेकों स्वरूप हो सकते हैं, अनेकों प्रश्न हो सकते हैं किन्तु मूल तात्पर्य ब्राह्मणवाद को रोगाणु-विषाणु आदि की भांति समझने-समझाने से सम्बंधित है। दोनों प्रश्न हैं ब्राह्मणवाद से भारत रसातल में कैसे चला गया ? और ब्राह्मणवाद अभिशाप क्यों बना ? ये विडंबना है कि जिन लुटेरों ने भारत को लूटा था उनके समर्थकों का देश भरण-पोषण करे ऐसा भी कहा जाता है, और जिसका देश है उसे बाहरी बताया जाता है। लेकिन ऐसा करने वाले कृतघ्न देशद्रोही हैं, क्योंकि एक भारत और भारतीय संस्कृत के मूल का ही छेदन करने का कुत्सित प्रयास करते रहे हैं।
ब्राह्मणवाद से भारत रसातल में कैसे चला गया, ब्राह्मणवाद अभिशाप क्यों बना ? what is brahmanwad
इन वामपंथियों/देशद्रोहियों की निर्लज्जता असीमित है और इसका प्रमाण यह है की ये भारतीय संस्कृति की निंदा करते हैं और विदेशी संस्कृति का प्रचार-प्रसार, ये भारतीय भाषा (हिन्दी-संस्कृत) का तो विरोध करते हैं किन्तु विदेशी भाषाओं (अंग्रेजी) के प्रचार-प्रसार में बढ़-चढ़कर भागीदार बनते हैं। इनको ब्राह्मण जो भारतीय संस्कृति, अर्थव्यवस्था, राजनीति आदि का केन्द्रबिन्दु है वह आतंकी लगता है और जो म्लेच्छ यत्र-तत्र-सर्वत्र पत्थरबाजी, बमबाजी, बलात्कार, हिंसा आदि ही करते रहते हैं वो शांतिदूत लगता है।
अरे कितना कहें ये लोग तो उन घोषित आतंकवादियों जिन्हें न्यायपालिका से मृत्युदण्ड मिलता है उसके लिये भी अश्रुपात करते हैं और जिसके लिये अश्रुपात करते हैं उससे प्रेम है यह स्पष्ट हो जाता है। यदि ये लोग आतंकवादियों के लिये अश्रुपात करते हैं तो इसका तात्पर्य यह भी है कि ये लोग मात्र देश-धर्म-संस्कृति के लिये ही नहीं मानवता के भी घातक हैं।
जो देश की संस्कृति के लिये घातक हो वह देश के लिये भी घातक ही होगा और उसे देशद्रोही ही कहा जाना चाहिये। इसमें मात्र वामपंथी ही नहीं हैं अपितु वो सभी आ जाते हैं जो तुष्टिकरण करते रहे हैं और आगे भी तुष्टिकरण की राजनीति से ही सत्तासुख प्राप्त करना चाहते हैं।
हमारे इस आलेख का विषय ब्राह्मणवाद से सम्बद्ध है और हम सभी जानते हैं कि ये देशद्रोही ब्राह्मणवाद की कितनी भर्त्सना करते रहे हैं ! इन लोगों ने इतिहासकार बनकर भारतीय इतिहास में ब्राह्मणवाद को एक अभिशाप सिद्ध कर रखा है। ये लोग ऐसा प्रचार-प्रसार करते हैं कि ब्राह्मणवाद ही भारत के लिये घातक है। वह तुष्टिकरण देश के लिये घातक नहीं है जिसके कारण देश खण्डित भी हो गया।
ये लोग ब्राह्मणवाद की आलोचना करते न तो थकते हैं न ही लज्जित होते हैं। ये लोग ब्राह्मणवाद जहर है ऐसा भी सिद्ध करते हैं और ब्राह्मणवाद का खात्मा करना चाहते हैं और इनको एक बल मिलता है इस पंक्ति से “यदि भारत के भविष्य का निर्माण करना है तो ब्राह्मणवाद को पैरों तले कुचल डालो”
ब्राह्मणवाद की आलोचना भारत में क्यों ? भारत की तो संस्कृति ही ब्राह्मणवाद है तो भारत में ब्राह्मणवाद की आलोचना करना भारतीय संस्कृति की आलोचना नहीं है क्या ? आप सबको राममंदिर निर्माण, प्रयागराज में कुम्भ, से संबंधित प्रश्न स्मरण करा दूँ जो इन देशद्रोहियों द्वारा उठाये जाते रहे थे :
- यदि मंदिर निर्माण करने से युवाओं को रोजगार मिलता है, यदि मंदिर निर्माण से देश की अर्थव्यवस्था बढ़ती है तो बनाओ मंदिर।
- क्या कुम्भ मेला से युवाओं को रोजगार मिल जायेगा ? क्या कुम्भ मेला से देश की अर्थव्यवस्था बढ़ेगी ? क्या कुम्भ से विकास होगा ?
आदि-इत्यादि।
राममंदिर एवं कुम्भ का देश के रोजगार में, देश की अर्थव्यवस्था में जो योगदान देखने को मिल रहा है वह इन लोगों लिये भिंगोये हुये जूते की तरह है किन्तु करें तो करें क्या निर्लज्जता असीमित है और कुत्ते की दुम सीधी नहीं होती तो ये वहीं-के-वहीं गंदी नाली में पड़े रहेंगे।
किन्तु हमें ब्राह्मणवाद से देश की अर्थव्यवस्था में जो योगदान होता है, जो व्यवसाय सृजन होता है उसे समझना और समझाना आवश्यक है क्योंकि इन देशद्रोहियों को तो विदेशी संस्कृति से प्रेम है और ब्राह्मणवाद के आध्यात्मिक पक्ष से इनका कोई लेना-देना ही नहीं है। इनका लेना-देना तो सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक पक्षों से है और हम आर्थिक आधार पर ब्राह्मणवाद के लाभ को समझने का प्रयास करें यह आवश्यक है।
अर्थव्यस्था और देश के विकास में, व्यवसाय सृजन में ब्राह्मणवाद का क्या योगदान है इससे सम्बंधित एक आलेख आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी का प्राप्त हुआ और यहां प्रस्तुत किया जा रहा है :
बहुधा ऐसा देखा जाता है कि सङ्कलनकर्ता व्यक्ति का नाम छुपाकर, कृतघ्नतापूर्वक लोग सामग्रियां प्रस्तुत करते हैं और उसमें मेरे अनेकों आलेख भी हैं जो “संपूर्ण कर्मकांड विधि” पर प्रकाशित हैं एवं संकलन करना कितना जटिल कार्य होता है यह मुझे ज्ञात है। अस्तु यह संकलन जिनका है श्रेय उनको ही दिया जायेगा।
इस संकलन का श्रेय संकलनकर्त्ता आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी को ही जाता है और इसके लिये हम उनके आभारी हैं कि वो इतना परिश्रम करते हुये ऐसे संकलन सतत अपने व्हाटसप समूह “ब्रह्मसूत्र” में प्रस्तुत करते रहते हैं। यहां उनकी छवि भी प्रस्तुत की गयी है। आगे का भाग यथावत प्रस्तुत किया गया है जैसा की प्राप्त हुआ है।

क्या है ब्राह्मणवाद ?
जगद्गुरु आद्य शंकराचार्य जी ने भगवान जगन्नाथ जी के मंदिर में दो व्यवस्थाएं दीं –
- प्रथम👉🏻 प्रभु का भोग प्रतिदिन मिट्टी के नव पात्र में बनेगा,
- द्वितीय👉🏻 प्रभु की रथ यात्रा हर वर्ष नए रथ से होगी।
ढाई हजार वर्ष पहले स्थापित इस परंपरा ने करोड़ो कुंभकार और काष्ठकार परिवार की जीविका सुरक्षित कर दी। आज भी है। दुनिया कोई कारपोरेट, हुकूमत यह कार्य ना कर सकी है और ना कर पाएगी।
यह ब्राह्मणवाद है।
देखिए, समझिए अपने आसपास के समाज को। सत्य आपके सामने बिखरा हुआ है।
ब्राह्मण प्रदत्त अर्थव्यवस्था: त्योहार और GDP
- देश भर में वर्ष पर्यन्त ब्राह्मणों द्वारा प्रवर्तित 60 महत्वपूर्ण त्योहार मनाए जाते हैं… इन त्योहारों में लगभग 10 लाख करोड़ का व्यापार पूरे देश में होता है और वर्ष पर्यन्त इन त्योहारों की अर्थव्यवस्था से लगभग 10 करोड़ लोगों को वृत्ति मिलती है, व्यवसाय मिलता है।
- इसी तरह देश में छोटे बड़े मिलाकर कुल 5 लाख हिंदू मंदिर हैं जिनमें प्रत्येक मन्दिर से औसतन 1000 परिवारों का व्यवसाय चलता है और भरण पोषण होता है…!
- इन त्योहारों और मंदिरों से जुड़े व्यवसायों से 90% लाभ कमज़ोर वर्गों के लोगों को ही मिलता है।
- ब्राह्मणप्रणीत धर्म समाप्त हो जाय तो इन 25 करोड़ लोगों का भरण पोषण नेता और अधिकारी करेंगे क्या ??
- शौचालय बनाइए मगर “देवालय से पहले शौचालय” जैसी विकास विरोधी बातें दिमाग़ से निकाल दीजिए !!
- इसलिए देश की अर्थव्यवस्था को समृद्ध बनाने वाले और समाज के कमज़ोर वर्गों को वर्ष पर्यन्त रोज़गार दिलाने वाले #ब्रह्मवाद को प्रणाम करना भी सीखिए !!
!! एते ब्रह्मवादिन: वदंति !!
आपने फेसबुक पर बहुत सुना होगा पंडे-पुरोहित समाज को लूट रहे हैं ,इनका बहिष्कार करो आदि आदि ।
आइये जानते हैं पंडे-पुरोहित सदियों से क्या करते आये हैं ।
किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होता है अर्थ और पुरोहित इसी अर्थ को मजबूती प्रदान करते आये हैं ,आप कह सकते हैं पुरोहित एक तरह मार्केटिंग का कार्य करते हैं । सत्यनारायण की कथा हो या नूतन गृहप्रतिष्ठा हो अथवा विवाहादि मांगलिक संस्कार पुरोहित आपके अर्थ को मजबूती प्रदान करने का कार्य करते हैं ।
भगवान् सत्यनारायण की कथा का उद्देश्य आत्मरंजन करना है, इससे हम भगवान् की भक्ति तो करते ही हैं , साथ ही अर्थ को मजबूती भी प्रदान करते हैं। एक पुरोहित से जब सत्यनारायण की कथा कराते हैं ,तब वे जो सामग्री की सूची देते हैं , उस पर कभी ध्यान दिया आपने ? सबसे पहले नवीन मिट्टी के कलश लेकर आओ , उसके ढँकने के लिये मिट्ठी का पात्र लेकर आओ । सत्यनारायण की कथा में ऐसे पांच कलशों की स्थापना होती है – “पञ्चभि: कलशैर्जुष्टं कदलीतोरणान्वितम् ।” (भविष्यपुराण)
व्यवसाय सृजन में ब्राह्मणवाद का क्या योगदान है
- जब ये नवीन कलश खरीदे जाएँगे तब किसका लाभ होगा ? कुम्भकार का । तो पुरोहित ने किसके अर्थ की मार्केटिंग की ?
- अब पुरोहितजी कहे काष्ठ की चौकी लेकर आओ ।
- किसका अर्थ लाभ होगा उससे ? काष्ठकारको । तो किसकी मार्केटिंग की पुरोहित ने ?
- पुरोहित कहते हैं चौकी पर बिछाने के लिये पीला वस्त्र मँगाते हैं । किसको वृत्ति का लाभ होगा ? जुलाहे या बुनकर का ।
अग्निहोत्र करने के लिये ब्राह्मणोंके लिये सबसे पवित्र अन्न क्या है ? दान में प्राप्त अन्न इतना पवित्र नहीं है , शिलोञ्छ्रवृत्ति (फसल कट जाने पर खेत से अनाज चुनकर लाना ) का अन्न ही अति पवित्र है, फिर भण्डारगृह (अनाज मंडी) आदि का अन्न अग्निहोत्र के लिये पवित्र कैसे हो सकता है ? इसीलिये भगवत् आराधन के लिये वस्त्र भी बुनकर के यहाँ से लाया हुआ पवित्र है ,न कि किसी बजाज के यहाँ लाया हुआ । पीले वस्त्र से पुरोहित ने किसकी वृत्ति की मार्केटिंग की ?
पुरोहितजी भगवान् शालग्राम के अभिषेक के लिये पंचामृत के लिये दूध ,दही ,मधु आदि मँगाते हैं । दूध से किसकी वृत्ति को लाभ हुआ ? गोपालकों को।
मधु आजकल की तरह चासनी वाला तो पूजा में प्रयोग होता नहीं है ,तो मधु निकालने वाले से मधु मंगाया जाता है , तब किसको वृत्ति का लाभ हुआ ? पुरोहित ने किसकी वृत्ति की मार्केटिंग की ? पुरोहितजी भगवान् सत्यनारायण के लिये कच्चा सूत और मोली मंगाते हैं। इससे किसकी वृत्ति को लाभ हुआ ? सूत कातने वाले का । पुष्प और मालाओं को मंगाकर किसके वृत्ति की व्यवस्था की पुरोहित ने ? मालाकार की ।
धूप-दीप से अर्चन कर पुरोहित जी नैवेद्य मंगाते हैं । उससे किसको लाभ हुआ ? हलवाई को ।
सत्यनारायण भगवान् को ताम्बूल निवेदन कर किसकी वृत्ति की व्यवस्था की ? पान बेचने वाले की ।
ऋतुफल समर्पित कर किसकी वृत्ति की व्यवस्था की ? फलों वाले की ।
षोडशोपचार के बाद हवन करते हैं ,हवन के लिये समिधा (आम आदि की लकड़ी) मंगाते हैं , किसको लाभ होता है उससे ? लक्कड़हारे को । सत्यनारायण की कथा में एक भील जातिके लक्कड़हारे का चरित्र सुनाया जाता है , जो काशी में शतानन्द नामके ब्राह्मण जो कि सत्यनारायणकी कथा कर रहे होते हैं ,के घर अपनी लकड़ी बेचने जाता है –
वनात्काष्ठानि विक्रेतुं पुरीं काशीं ययु: क्वचित् । एकस्तृषाकुलो यातो विष्णुदासाश्रमं तदा ।। (भविष्यपुराण )
सारी लकड़ी बिक जाने पर वह भिल्ल लक्कड़हारा भी भगवान् सत्यनारायण की कथा करवाता है । तो हवन की लकड़ी से किसकी वृत्ति की मार्केटिंग हुई ?
अब बताइये सत्यनारायण भगवान् की छोटी सी पूजा से कितनों की वृत्ति की मार्केटिंग की पुरोहित ने ? क्या पुरोहित इन सबसे कमीशन लेते हैं ? ब्राह्मण पुरोहित बिना शुल्क बिना कमीशन के लिये सबकी वृत्ति की व्यवस्था करते हैं ।
यही नहीं जो ब्राह्मण पुरोहित धनके लालच में कर्मकाण्ड का आश्रय लेते हैं , उनके अन्न को तो शास्त्र ने अपवित्र घोषित कर ही दिया है साथ में ऐसे पुरोहितों को श्राद्ध में ब्राह्मण भोजन के भी अयोग्य ठहरा दिया है । चारों वर्णों की वृत्ति की व्यवस्था करने वाले ब्राह्मण पुरोहित का पालन यथासामर्थ्य दान-दक्षिणा देकर करना चाहिये । यज्ञ-पूजापाठ के मण्डप स्थल पर गोबर से लीपकर चौक बनाने और सर्वसमाज को यज्ञ-पूजापाठ में बुलावा देने की वृत्ति नापित कराते हैं ।
तुलादानके द्वारा चांडाल की वृत्ति पुरोहित कराता है । बच्चे के जन्मके समय मूल उतारने की वृत्ति , तेल दान की वृत्ति भड्डरी को पुरोहित कराता है । यह सब सङ्केत मात्र हैं ,यह व्यवस्था बहुत विस्तृत है , जिसका एक लेख में लिख पाना सम्भव ही नहीं ।
वर्णाश्रम व्यवस्था
वर्णाश्रम व्यवस्था में कोई किसी की वृत्ति का हरण नहीं करता है ,अपितु सभी वर्ण एक दूसरे का भरण-पोषण करते हैं ,जिससे सभी की वृत्ति निर्धारित होती है ,समाज को वृत्ति लाभ होने पर राष्ट्रकी अर्थव्यवस्था सुदृढ होती है । अर्थव्यवस्था सुदृढ होने पर धर्म की रीढ़ सुदृढ होती है ।
जब किसी राष्ट्र को दासिता की जंजीरों में जकड़ना हो ,तो उसकी रीढ़ अर्थव्यवस्था को मिटा दे ,अर्थव्यवस्था मिटती है उस राष्ट्र की संस्कृति और परम्परा से जिससे समाज का भरण-पोषण सहस्राब्दियों से होता आया हो । अँग्रेजों ने भी यही किया ,भारत पर राज्य करने के लिये भारत की रीढ़ भारतकी अर्थव्यवस्था पर प्रहार किया , अर्थव्यवस्था पर प्रहार करने के लिये संस्कृति को मिटाना आवश्यक था ।
भारतीय अर्थव्यवस्था और संस्कृति के मूल पुरोहितों को मिटाना आवश्यक था । तो अँग्रेजों ने पुरोहितों के प्रति समाज के मन में घृणा भर दी , जिससे पुरोहित नष्ट हुए । फिर समाज के अन्य वर्गों की वृत्ति नष्ट की ,जो हस्तशिल्पी-कारीगर थे , उनको नष्ट करके। हस्तशिल्पियों को उन्हें नष्ट किया आधुनिक मशीनों के द्वारा । पुरोहितों के नष्ट होने से अर्थ व्यवस्था पर सीधा प्रहार किया, सबकी वृत्ति की मार्केटिंग बन्द हुई ,फिर सबकी वृत्ति के साधन भी छीन लिये गये ।
परिणाम स्वरूप भारतमें आर्थिक विपन्नताका संकट उत्पन्न हो गया । आज युवा बेरोजगार क्यों है ? क्योंकि जो वृत्ति सभी वर्गों को हमारी संस्कृति में नैसर्गिक प्राप्त थी , वह विदेशी षड्यन्तकारियों ने नष्ट करके एक दूसरे वर्ग के प्रति ऐसी घृणा भरी की उसकी भरपाई आज तक नहीं हो पाई है । हस्तशिल्पी-कारीगरों को नष्ट कर बड़े-बड़े यन्त्रों वाले कारखानों को जन्म दिया गया, जिससे अर्थव्यवस्था पूर्ण रूप से चरमरा गई ,अब भी उन्ही उद्योगों की मार्केटिक बड़े बड़े क्रिकेटरों-अभिनेताओं के द्वारा होती है, जिसके लिये वे करोड़ो-अरबों कम्पनियों से बसूलते हैं ।
हस्तशिल्पियों – कारीगरों के द्वारा निर्मित उत्पादनों की यही मार्केटिंग ब्राह्मण पुरोहित बिना शुल्कके करते थे ,तब उन पुरोहितों को अत्याचारी, लुटेरे पंडे-पुरोहित बनाकर समाजमें उनके प्रति घृणा भर दी गयी । उत्पादन आज भी है, मार्केटिंग आज भी है, लेकिन आज अर्थव्यवस्था भी कमजोर है और ज्यादातर समाज वृत्तिविहीन बेरोजगार हैं। सबसे बड़ा दुर्भाग्य ये है आज भी स्वयं को धार्मिक हिन्दू कहने वाले कोई सत्यनारायण की कथा को पाखण्ड के नामपर तो कोई शोषणके नाम पर अर्थ व्यवस्था आधार, सबकी वृत्तिकी मार्केटिंग करने वाले ब्राह्मण पुरोहितों का दुष्प्रचार करने में लगे हुए हैं ।
भारतकी रीढ़ अर्थ व्यवस्था पर प्रहार करने वाले ,भारत को विपन्नता की युवाओं को वित्तिविहीनता की भीषण चपेट में लाने वालों में आपका भी योगदान होगा । मिटा दीजिए पंडे-पुरिहितों को, शतप्रतिशत रोजगारी का प्रकल्प कहाँ से लाएँगे ?
एक तरफ पुरोहित भगवान् की कथाके माध्यम से समाज के आत्मरंजन में लगे थे, तो वहीं दूसरी तरफ वे सबकी वृत्ति की व्यवस्था करके अर्थ को मजबूत बना रहे थे । आज पुरोहितों को नष्ट करके आत्मरंजन को भूल मनोरंजन के नाम पर सिनेमा जगत् को करोड़ो-अरबों रुपये का व्यापार कराते हैं , फिर बेरोजगारी नहीं मिटा सकते हैं , लेकिन गाली पंडे-पुरोहितों को देंगे। आश्चर्य है ।
निष्कर्ष : इस प्रकार हम देखते हैं की ब्राह्मणवाद तो अर्थव्यवस्था की रीढ़ सिद्ध होती है, ब्राह्मणवाद से जितना व्यवसाय सृजन होता है उतना व्यवसाय सृजन तो सरकारें भी नहीं कर सकती है। और इस प्रकार अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण मात्र से ही ब्राह्मणवाद देश का संरक्षक सिद्ध होता है फिर ये लोग जो ब्राह्मणवाद को समाप्त करना चाहते हैं ये देशद्रोही ही सिद्ध होते हैं क्योंकि ब्राह्मणवाद समाप्त हो जाये (मान लिया) तो देश की अर्थव्यवस्था ही चौपट हो जायेगी।
हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।