आज हमारे मन में अंधविश्वास को लेकर उथल-पुथल हो रही थी और क्योंकि हमारे सामने अनेकों ऐसे प्रकरण एक जीवंत दृश्य की भांति चलने लगे जो अंधविश्वास हैं और बड़ी बात तो ये है कि जो लोग रात-दिन अंधविश्वास-अंधविश्वास चिल्लाते हुये सनातन पर प्रहार करते रहते हैं ये सब उनके ही रचे हुये दलदल के दृश्य थे। ये जो आधुनिकता का दम्भ करते हुये सनातन के सभी विषयों को अंधविश्वास कहते हुये जनमानस को भ्रमित करते रहते हैं वही लोग एक बड़ा षड्यंत्र करते हुये अंधविश्वास का दलदल भी बना रहे हैं। आइये गंभीरता से समझते हैं।
आधुनिकतावादी का देखो छल बल, रच रहे अंधविश्वास का दलदल
यहां हम जिन प्रमुख बिंदुओं के आधार पर इन आधुनिकतावादियों के कुकृत्यों अर्थात अंधविश्वास के रचे हुये दलदल को समझने का प्रयास करेंगे वो इस प्रकार हैं :
- पति का कड़वा चौथ करना
- देवताओं को जन्म देना
- पितरों की पूजा करना
- विवाह का उल्टा करके विवाह तोड़ना
- पति द्वारा पत्नी को प्रणाम करना
- घर में बड़ी-बड़ी प्रतिमायें रखना
- वासना (प्यार) को सर्वशक्तिमान सिद्ध करना
दृश्य सामग्री (फिल्म, सीरियल आदि) बनाने वाले समूह में ऐसे लोगों की बाढ़ सी है जो शास्त्रोक्त विधान, नियम, परंपरा आदि को अंधविश्वास-अंधविश्वास कहकर उन्मूलन का प्रयास करते हैं। वास्तविक अंधविश्वास क्या है और उसका उन्मूलन कैसे होगा कभी चर्चा नहीं करते हैं। अंधविश्वास क्या है आज तक उसकी व्याख्या नहीं कर पाये हैं।
किन्तु जब भी धर्म-कर्मकांड संबंधी किसी विधि-विधान की चर्चा हो तो वहां अंधविश्वास का दुर्गंध फैलाते रहते हैं। और इस प्रकार की सोच आधुनिक सोच, प्रोग्रेसिव सोच आदि कहकर प्रचारित करते रहते हैं। किन्तु सूरज पश्चिम में तब उदित होता दिखता है जब यही नये-नये अंधविश्वास भी प्रचारित-प्रसारित करते रहते हैं।
इनके पश्चात् अन्य सभी क्षेत्रों में भी इस प्रकार की सोच से प्रभावित लोग कम नहीं हैं और इनकी संख्या इतनी है कि विभिन्न माध्यमों से हमारे पास जो सूचनायें आती हैं वो इसी वर्ग द्वारा गढ़ी हुयी होती है।
मीडिया वाले भी रात-दिन अंधविश्वास-अंधविश्वास चिल्लाते रहते हैं, इस श्रेणी के निंदनीय प्राणी राजनीति में भी होते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में तो ये लोग गहरी पकड़ बना चुके हैं। सबका एक ही लक्षण है अंधविश्वास चिल्लाते रहना किन्तु यदि पूछ दो कि अंधविश्वास क्या है तो दांत निपोडेंगे।
संक्षेप में हम यहां भी अंधविश्वास को समझते हैं, क्योंकि अंधविश्वास को समझे बिना इस आलेख को समझना कठिन होगा। यह गंभीरतापूर्वक विचार करने का विषय है और इसे समझने के लिये प्रथमतया अंधविश्वास विश्वास को समझना आवश्यक है। अंधविश्वास को समझने के लिये यहां दिये गये अनुसरण पथ का अनुगमन कर सकते हैं।
अंधविश्वास की संक्षिप्त व्याख्या : आध्यात्मिक जीवन की यात्रा हेतु शास्त्रों में दो नेत्र बताये गये हैं “श्रुति-स्मृति” और इन दो नेत्रों में से यदि एक का ज्ञान न हो तो काण एवं दोनों में से किसी एक का भी ज्ञान न हो तो अंध संज्ञा होती है। जो अंधे नहीं हैं अर्थात विद्वान हैं उनपर विश्वास करना विश्वास होता है किन्तु जो अंधे होते हैं अर्थात “वेद-स्मृति” के ज्ञाता नहीं होते उनपर विश्वास करना अंधविश्वास होता है।
अनाथ होना एक अभिशाप होता है
इस चर्चा को एक अन्य प्रकार से समझने का भी प्रयास करना आवश्यक है। सनातन में कुछ ही अनाथ रहते हैं ऐसा नियम बनाया गया है। जब तक बाबा-मामा आदि होते हैं तब तक उनके बेटे-पोते सभी सनाथ होते हैं अनाथ नहीं होते हैं, इसी प्रकार ब्राह्मण से अन्य तीनों वर्ण सनाथ होते हैं, अनाथ नहीं होते।
जब किसी परिवार में माता-पिता की मृत्यु हो जाती है तो उनके बच्चे अनाथ हो जाते हैं तथापि उनमें से एक जो सबसे बड़ा होता है उसे पगड़ी देकर सबका नाथ घोषित किया जाता है अर्थात सभी भाइयों में से एक ही अनाथ होता है बड़ा किन्तु उसे ही नाथ बनाया जाता है शेष सभी भाई तब भी अनाथ नहीं होते सनाथ ही रहते हैं।
अनाथ होने का तात्पर्य होता है अनियंत्रित होना, अनियंत्रित होने पर उच्छृंखलता का बढ़ना, अपराध-अनाचार आदि का बढ़ना स्वाभाविक होता है। सनाथ होने का तात्पर्य होता है नियंत्रित होना क्योंकि नियंत्रण करने वाला कोई होता है। जहां नियंत्रण करने वाला हो वहां उच्छृंखलता, अपराध, अनाचार को बढ़ावा नहीं मिलता है क्योंकि जो नाथ होता है वह नियंत्रित करता है।
अनाथ होना एक कमी होता है और जिस बच्चे के माता-पिता नहीं होते उसे टुअर-टापर कहा जाता है। उसके ऊपर लोगों को दया आती है, उसे अन्य परिवार-समाज आदि हेयदृष्टि से देखें न देखें देखभाल करने का प्रयास करते हैं, सनाथ होने का भाव भरने का प्रयास करते हैं।
एक विश्वव्यापी समूह जो है जिसे वर्त्तमान में डीप स्टेट भी कहा जाने लगा है, एवं इसके अनेकानेक अंग भी हैं जो जिन्होंने सर्वप्रथम परिवार को तोड़ा। बच्चे बड़े हो गये, विवाह हुआ तो नया परिवार बन गया, मूल परिवार से विखंडित हो गया, अनाथ हो गया क्योंकि वो नये परिवार का नाथ हो गया उसे यह नहीं समझाया जा रहा है कि वो अनाथ हो गया है, उसे ये समझाया जा रहा है कि तुम नाथ हो गये। और इसके अनेकानेक दुष्परिणाम भी हैं जो दिखाई दे रहे हैं। परिवार का विखंडन, तलाक नामक प्रचलन की स्थापना, अपराध-दुराचार-भ्रष्टाचार आदि का सुरसा के समान बढ़ना।
जिन लोगों ने अनाथ होने को ही अच्छा बनाया है समाज व परिवार को अनाथ होने के लिये प्रेरित किया है, अधिकांश लोगों के मन में ये भर दिया गया कि अनाथ होना ही अच्छा है कारण यह है कि ये अनाथ होने वाले भी वास्तव में अनाथ होते नहीं है इनके ऊपर वही सांप कुंडली मारकर बैठ जाते हैं जो इन्हें अनाथ बनने के लिये प्रेरित करते हैं। क्योंकि उन्हें ज्ञात है कोई अनाथ नहीं रह सकता, ये स्वाभाविक है कि व्यक्ति अपने सिर पर छत चाहता है जीवन में नाथ चाहता है, सिर पर किसी का हाथ हो ऐसी इच्छा रखता है।
पहले लोगों को क्या करना चाहिये क्या नहीं करना चाहिये ये उसे परिवार-समाज बताता था, विभिन्न वर्णों को ब्राह्मण बताते थे और ब्राह्मण भी अपने लिये में विशेष विद्वान-ज्ञानी ब्राह्मण को नाथ (गुरु-पुरोहित) बनाते थे वो भी अनाथ नहीं होते थे इसीलिये कहा गया है “ब्राह्मणस्य ब्राह्मणो गतिः” ।
किन्तु उस समूह ने जिसे नाथ बनना था, नियंत्रित करना था, अपने अनुसार भारतीयों को चलाना था पहले तो अनाथ बनाया, विभिन्न वर्णों को ब्राह्मण के प्रति विद्वेष भरा, समान-अधिकार, समानता आदि का राग लगाकर समाज को तोड़ा। बच्चों को नियंत्रित करने के लिये परिवारों से तोड़ने का षड्यंत्र रचा, तोड़ा और स्वयं उसका नाथ बन बैठा, उसे नियंत्रित करने लगा है।
और अब पति-पत्नी को लड़ा रहा है, भाई-भाई को लड़ा रहा है, पिता-पुत्र को लड़ा रहा है, भाई बहन को लड़ा रहा है, वर्ण-वर्ण में विवाद करा रहा है, जाति-जाति को लड़ा रहा है, और बंदरबांट कर रहा है। यदि ये सब सनाथ होते तो उन्हें बंदरबांट करने का अवसर प्राप्त ही नहीं होता।
पुनः आप एक न हो जाओ, आपकी आंखें न खुल जाये, अपने आप को पुनः सनाथ करते हुये उसे लात माड़कर भगा न दो इसलिये जैसे ही संस्कार, धर्म, आस्था, पूजा, कर्मकांड, संस्कृति, धार्मिक ग्रंथ आदि किसी भी विषय पर चर्चा करो तो चिल्लाने लगेंगे अंधविश्वास-अंधविश्वास-अंधविश्वास। मनुस्मृति ब्राह्मण को सभी वर्णों का नाथ बनाता है, कोई भी वर्ण अनाथ नहीं हो यह सिद्धांत स्थापित करता है, ऐसा नहीं कि ब्राह्मण को अनियंत्रित कर देता है ब्राह्मण का नाथ तो स्वयं ही है और ब्राह्मण के ऊपर अधिक नियंत्रण लगाता है। किन्तु देखिये मनुस्मृति के साथ क्या-क्या किया जा रहा है ?
मनुस्मृति समाज-राष्ट्र को एकसूत्र में बांध सकता है, तो मनुस्मृति को ऐसा ग्रन्थ सिद्ध करने का प्रयास किया जा रहा है जैसे इसमें गालियां दी गयी हो। उस समूह को मनुस्मृति से भय है इसलिये अपने दलालों के द्वारा वो मनुस्मृति को जलवाते हैं, फड़वाते हैं। रामायण से उन्हें भय है कहीं रामायण पढ़कर भारतीय सनाथ न हो जायें और उनको लात मारकर भगा न दें इसलिये रामायण पर भी विवाद करते हैं।
- मनुस्मृति किसी वर्ण को अनाथ नहीं बनने देता है।
- मनुस्मृति किसी परिवार को अनाथ नहीं बनने देता है।
- मनुस्मृति किसी व्यक्ति को अनाथ नहीं बनने देता है।
अनाथ होना किसी अभिशाप से कम नहीं होता है और ये जानना है तो उन बच्चों को जाकर देखो जो अनाथ होते हैं। इसे समझो और यदि आज अनाथ हो अर्थात अपने सिर पर उस लुटेरी समूह को नाथ मानकर बैठा रखे हो तो उसे पटको, नहीं तो वो गन्ने की तरह चूस लेंगे, बर्बाद कर देंगे, वो अपनी स्वार्थसिद्धि कर रहे हैं, तुमको भ्रमित कर रखा है और तुम अंधविश्वास-अंधविश्वास-अंधविश्वास चिल्लाते रहते हो। तनिक देखो तो सही उसी गिरोह ने कितने नये अंधविश्वासों को जन्म दिया है, अंधविश्वास के दलदल में कैसे फंसा रहे हैं ?
अंधविश्वास का दलदल
पुराणों में रामायण में एक प्रसङ्ग स्वयंवर का है जिसमें नारद जी भी सम्मिलित होते हैं और अनाथ होना क्या है, अनियंत्रित होना क्या है ये नारद के चरित्र से समझ में आ जाता है। स्वयंवर के पूर्व नारद जिस विष्णु को नाथ मान रहे थे स्वयंवर के पश्चात् अनाथ की तरह हो गए, उन्हें नाथ नहीं स्वीकारा और उन विष्णु को ही श्राप दे दिया, बाद में पश्चाताप भी करने लगे।
वर्त्तमान भारत में लोगों को वही नारद बनाया जा रहा है जो स्वयंवर में भाग लेने गया था और विष्णु को नाथ नहीं स्वीकारा। ये गिरोह तुम्हें सिखाते हैं कि ब्राह्मण अंधविश्वास फैलाता है और तुम स्वीकार कर लेते हो। किन्तु यही गिरोह तुम्हें अंधविश्वास के किसी दलदल में फंसा रहा है तनिक सोचो, विचार तो करो। आगे के उदाहरणों से ये प्रकरण स्पष्ट हो जायेगा :
पति का कड़वा चौथ करना
आज ये लोग (फिल्म-सीरियल-समाचार आदि माध्यमों से) तुम्हें कहते हैं कि यदि पति की लम्बी आयु के लिये पत्नी कड़वा चौथ करती है तो पत्नी की लम्बी आयु के लिये पति को भी कड़वा चौथ करना चाहिये। और तुम स्वीकार भी कर लेते हो, करने भी लगते हो। जबकि यही अंधविश्वास है क्योंकि जो बता रहा है वो अंधा है। उसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं है, कुछ भी अनाप-सनाप बकता रहता है।
उस अंधे के बताने से तुम (पति) कड़वा चौथ कर लेते हो ये अंधविश्वास है। यहां अंधविश्वास कौन फैला रहा है वही लोग जो रात-दिन अंधविश्वास-अंधविश्वास चिल्लाते हैं।
देवताओं को जन्म देना
यही लोग नये-नये देवताओं को भी जन्म देते हैं और तुम उनकी देवता की पूजा करने भी लगते हो, उनके मंदिर जाने लगते हो। घर में उसकी प्रतिमा-फोटो आदि बनाकर रखते हो। ये समझ ही नहीं पाते हो कि यह अंधविश्वास है। शास्त्रों में इस देवता की कोई चर्चा नहीं है। इस गिरोह ने किस देवता को जन्म दिया है नाम लेना आवश्यक नहीं है इतना विवेक तो सबके पास है कि समझ लेंगे।
पितरों की पूजा करना
यही गिरोह तुम्हें पितरों की फोटो रखकर पूजा करना सीखा रहा है और तुम सीखते जा रहे हो। पितरों की फोटो पूजा नहीं होती है। पितरों का श्राद्ध-तर्पण होता है। किन्तु ये लोग तुम्हें कहेंगे की श्राद्ध-तर्पण अंधविश्वास है और अंधविश्वास मान लोगे। किन्तु यही लोग जो निषिद्ध आचरण पितरों की पूजा करना सीखा रहे हैं, अर्थात अंधविश्वास फैला रहे हैं किन्तु यह तुम्हें अंधविश्वास नहीं लगता होगा। ये अंधविश्वास के दलदल में तुम्हें फंसाते जा रहे हैं।
विवाह का उल्टा करके विवाह तोड़ना
जिस प्रकार से विवाह होता है उसी प्रकार से उसका उल्टा करके विवाह-विच्छेद नहीं होता है। किन्तु ये गिरोह तुम्हें सीखा रहा है की जैसे विवाह हुआ उसका उल्टा करके विवाह तोड़ा भी जा सकता है और तुम सीखना प्रारंभ कर रहे हैं। यही अंधविश्वास है और अंधविश्वास के दलदल में वो गिरोह तुम्हें फंसाता जा रहा है। शास्त्र में ऐसा विधान नहीं है और विद्वानों ने ऐसा कुछ नहीं बताया ही ये अंधे लोगों का गिरोह बता रहा है और उसपर विश्वास करते हो इसलिये यह अंधविश्वास है।
पति द्वारा पत्नी को प्रणाम करना
शास्त्रों में पति को ही पत्नी का गुरु कहा गया है और भारतीय संस्कृति में आज भी पत्नियां पतियों को प्रणाम करती हैं। अब ये लोग तुम्हें सिखाने लगे हैं पति ही पत्नी को प्रणाम करे और शनैः-शनैः यह भी सीखने लगोगे। यही अंधविश्वास है क्योंकि जो बताने वाला है वो अंधा है, उसने शास्त्रों का अध्ययन नहीं किया है।
घर में बड़ी-बड़ी प्रतिमायें रखना
शास्त्रों के अनुसार घर में द्वादशाङ्गुल प्रतिमा का ही विधान है। किन्तु ये गिरोह तुम्हें सीखा रहा है बड़ी-बड़ी प्रतिमायें स्थापित करो जिसका शास्त्रों में निषेध है। ये गिरोह जो बड़ी-बड़ी प्रतिमायें घर में रखने के लिये सीखा रहा है उसे शास्त्रों का ज्ञान नहीं है अर्थात अंधा है और उस पर विश्वास करके ऐसा करना अंधविश्वास है।
वासना (प्यार) को सर्वशक्तिमान सिद्ध करना
“प्रेम ते प्रकट होंहि मैं जाना”, “ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय” आदि में प्रेम की बात की गयी है। प्रेम संपूर्ण विश्व से, भगवान से होता है किसी व्यक्ति मात्र से नहीं। किसी व्यक्ति मात्र से भी प्रेम हो तो भी उसे संपूर्ण विश्व से, ईश्वर से प्रेम ही होगा द्वेष नहीं। प्रेम सर्वशक्तिमान होता है क्योंकि प्रेम सर्वशक्तिमान ईश्वर को भी प्रकट कर सकता है।
किन्तु ये गिरोह वासना को प्यार कहकर परोस रहे हैं, वासना का पाठ पढ़ा-पढ़ाकर बच्चों को माता-पिता, परिवार, समाज, राष्ट्र का द्रोही बना रहे हैं, व्यसनी-उच्छृंखल-अमर्यादित बना रहे हैं। समाज और देश में दुराचार का प्रसार कर रहे हैं, टुकड़े-टुकड़े में कटवा रहे हैं। प्रेम जिससे विवाह होता है उस पति-पत्नी से किया जाता है और वासना जिससे विवाह करने की इच्छा हो, जिसके लिये विद्रोही बन जाते हैं उसमें रहती है।
ये लोग वासना को ही प्रेम सिद्ध कर रहे हैं और इनपर विश्वास करना ही अंधविश्वास है क्योंकि ये प्यार कहकर जो सिखाते हैं वो प्रेम नहीं होता है वासना होती है।
निष्कर्ष
उपरोक्त विश्लेषण के अनुसार जिन बिंदुओं की चर्चा की गयी है उसके अतिरिक्त भी ये बहुत कुछ सिखा रहे हैं, बता रहे हैं और अंधविश्वास के दलदल में फंसा रहे हैं किन्तु आप उन पर विश्वास करते रहो, उनको लात मारकर भगा न दो इसलिये जैसे ही धर्म, आस्था, संस्कृति, संस्कार आदि कोई चर्चा होगी खटाखट-खटाखट ये गिरोह अंधविश्वास-अंधविश्वास चिल्लाने लगेगा। कट्टरता-कट्टरता कहकर चिढायेगा क्योंकि इस गिरोह को अपनी दुकान चलानी है।
आवश्यकता यह है कि यदि कोई अंधविश्वास बोले तो उससे पूछो अंधविश्वास क्या है, अंधविश्वास किसे कहते हैं और जिसे विषय को तुम अंधविश्वास कह रहे हो वह अंधविश्वास है ये सिद्ध करो। यदि तुमने ऐसा प्रश्न मात्र कर दिया तो ये सर पर पांव रखकर भागने लगेंगे क्योंकि उत्तर नहीं दे पायेंगे।
किन्तु उससे पूर्व आपको अंधविश्वास किसे कहते हैं ये जानना आवश्यक है, तभी आप निरुत्तर कर पायेंगे अन्यथा ये आपको कुछ भी लाग-लपेट कर बता देंगे, अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे। अंधविश्वास का उन्मूलन आवश्यक है और जो अंधविश्वास का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं और अंधविश्वास-अंधविश्वास चिल्ला भी रहे हैं उनसे यह पूछना आवश्यक है कि अंधविश्वास क्या है ?
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। गूगल भी उसी समूह का सहयोग करते पाया जा रहा है अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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