व्रतोपवास में क्षौर कर्म विचार व निषेध – kshaur karma

व्रतोपवास में क्षौर कर्म विचार व निषेध - kshaur karma

क्षौर कर्म संबंधी विस्तृत चर्चा पूर्व आलेख में प्रस्तुत की गयी थी जो आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी द्वारा संकलित थी और जिसके लिये हम उनके आभारी हैं एवं पुनः यात्रा, श्राद्ध, व्रतोपवास में क्षौर विचार संबंधी और क्षौर निषेध संबंधी विषय भी उन्हीं के द्वारा संकलित किया गया है और इसे भी यथावत यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। संकलन करना भी श्रमसाध्य कार्य है और इसके लिये सङ्कलनकर्ता आभार के पात्र होते हैं और पुनः आभार।

सामान्य क्षौर विधान से अतिरिक्त भी कुछ विशेष विचार होता है यथा व्रत-उपवास-श्राद्धादि में क्षौर की आवश्यकता, यात्रा व अन्य कालों में क्षौर का निषेध जिसकी चर्चा इस आलेख में प्रस्तुत है।

सभी विषय शास्त्रोक्त प्रमाणयुक्त हैं अर्थात यह तर्क-वितर्क नहीं है और इसमें मैंने कोई संशोधन नहीं किया है, आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी का जो सन्देश व्हाट्सअप समूह “ब्रह्मसूत्र” में प्राप्त हुआ वही अनुमति पूर्वक सशीर्षक यथावत प्रस्तुत है ।

प्रणम्य आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी की छवि भी यहां दी जा रही है।

आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी
आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी

॥ यात्रायां क्षौर-निषेधः ॥

वपनं वमनं छौद्रं तैलञ्चैव विवर्जयेत् । तदहश्चावशेषाणि सप्ताहं मैथुनं त्यजेत् ॥
इति च्यवनः ॥ (मुहूर्त चिन्तामणि पीयूषधारा टीका पृ. ३९८ ।)

यात्राहवे तूत्कट – भूषिते च भुक्तोत्कटे रात्रिषु सन्ध्ययोर्वा ।
क्षौरं प्रकुर्यात् खलु चात्मनो हि श्रेयोभिलाषी न कदाचिदेव ॥

इति वशिष्ठः ॥ इत्यत्र क्षौर पदोपादानात्। क्षौरमशुभपदार्थोपलक्षणम् । यदाह स एव कामं क्रोधं तथा लोभं मद्यं मांसं च रोदनम् ॥

च्यवन महर्षि का कहना है कि – यात्रा के दिन बाल बनवाना, ओषधि द्वारा वमन क्रिया, मधु भक्षण, तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए। एक सप्ताह पूर्व मैथुन भी छोड़ दे । वपन शब्द का अभिप्राय है दाढ़ी, मूंछ सहित शिर का बाल । आत्म कल्याण चाहनेवाला यात्रा तथा युद्ध एवम् सायं प्रातः सन्ध्या समय उत्कट आभूषण पहने हुए और भोजन के पश्चात् बाल नहीं बनवाना चाहिए । यहाँ क्षौर का निषेध है। क्षौर शब्द क्षौर तथा अशुभ पदार्थ का बोधक है। और काम, क्रोध, लोभ, मद्य-पान मांस भक्षण तथा रुदन यात्रा के दिन नहीं करना चाहिए।

मीने धनुषि सिंहे च स्थिते सप्ततुरङ्गमे । क्षौरं यात्रां न कुर्वीत विवाहं गृहकर्म च ॥ (स्मृति कौतुभ पृ. ५५१)

न भाद्रमासे न च चैत्र पौषे क्षौरं विवाहो न च कर्णवेधः॥

सूर्य यदि मीन धनु और सिंह राशि पर हो तो क्षौर कर्म, यात्रा, विवाह और गृहकर्म नहीं करना चाहिए। और भी – चैत्र, भाद्र व पौष मासों में क्रमशः क्षौर, विवाह, कर्णवेध का निषेध कहा गया है।

॥ श्राद्ध दिने क्षौर – विचारः ॥

निमन्त्र्य विप्राँस्तदहर्वर्जयेन् मैथुनं क्षुरम् ॥ वृद्ध मनुः

श्राद्ध के लिये ब्राह्मणों को निमन्त्रण देकर उस दिन मैथुन तथा बाल नहीं बनवाना चाहिये। यह वृद्ध मनु का आदेश है।

देवकार्ये पितुः श्राद्धे रवेरंशपरिग्रहे । क्षुरकर्म न कुर्वीत जन्ममासे च जन्मभे ॥ इति राजमार्तण्डे ||

देव कार्य तथा पिता के श्राद्ध एवं सूर्य के अंश के परिग्रह (अमावस्या) और जन्म-मास तथा जन्मदिन में बाल नहीं बनवाना चाहिये ।

शन्याररविवारेषु रात्रौ पाते व्रतेऽहनि । श्राद्धाहे प्रतिपद्रिक्ता भद्राः क्षौरे विवर्जयेत् ॥ इति वृद्धगर्गः ॥

शनिवार, भौमवार, रविवार, व्यतीपात तथा व्रत के दिन, रात्रि के समय, श्राद्ध के दिन, प्रतिपदा, रिक्तातिथि, भद्रा तिथियों में क्षौर न करावे ।

॥ व्रतोपवासादौ क्षौर – विचारः ॥

व्रतानामुपवासानां श्राद्धादीनाञ्च संयमे । न करोति क्षौरकर्म अशुचिः सर्वकर्मसु ॥ (संयमे – पूर्वदिने इत्यर्थः)

विशिष्ट व्रत उपवास एवं श्राद्ध के एक दिन पहले जो क्षौर नहीं करवाता है, वह प्रत्येक कर्म में अपवित्र रहता है।

व्रतानामुपवासानां श्राद्धादीनां च सङ्गमे । करोति यः कर्म सोऽशुचिः सर्वकर्मसु ॥ (सङ्गमे तद्दिने इत्यर्थः ॥)

विशिष्ट व्रत उपवास एवं श्राद्ध के दिन जो क्षौर करवाता है। वह प्रत्येक कर्म में अपवित्र कहा गया है ।

॥ क्षौर – निषिद्ध कालाः ॥

ऊर्ध्वं विवाहात् पुत्रस्य तथा च व्रतबन्धनात् । आत्मनो मुण्डनं नैव वर्षं वर्षार्ध मेव च ॥’ इति योगी याज्ञवल्क्य ।

पुत्र के यज्ञोपवीत तथा विवाह के बाद एक वर्ष अथवा छः मास के अन्दर मुण्डन नहीं करवाना चाहिये ।

न स्नातभुक्त्वोत्कट – भूषितानामभ्यक्तयात्रासमरोत्सुकानाम् ।
क्षौरं विदध्यान्निशि सन्ध्ययोर्वाजिजीविषूणां नवमे न चाह्नि ॥ इति श्रीपतिः

स्नान व भोजन कर लेने पर तथा महत्वपूर्ण वस्तुओं से अलङ्कृत होने पर एवं शरीर में तेल मालिश कर लेने पर और यात्रा समय तथा समर (युद्ध) के पूर्व व रात्रि में, दोनों सन्ध्या समय और पूर्व क्षौर के नौवे दिन बाल नहीं बनवाना चाहिये ।

रव्यारसौरिवारेषु रात्रौ पाते व्रतेऽहनि । श्राद्धाहं प्रतिपद्रिक्ता भद्राः क्षौरषुन्वर्जयेत् ॥ इति वृद्ध गार्ग्यः ॥

रवि, शनि, भौम व रात्रि में, व्यतीपात तथा व्रत एवं श्राद्ध के दिन प्रतिपदा तथा रिक्ता तिथियों और भद्रा में बाल नहीं बनवाना चाहिये।

देवकार्ये पितुः श्राद्धे रवेरंश परिक्षये । क्षौरकर्म न कुर्वीत जन्ममासे न जन्मभे ॥ इति राज मार्तण्डे

जिस दिन देव कार्य हो तथा पिता आदि का श्राद्ध हो और सूर्य का अंश नष्ट होने पर जन्म मास तथा जन्म नक्षत्र में बाल न बनवावे।

न देव-पितृ-कार्यान्ते न पक्षादौ वपेन्नरः । उपोषितोऽथ जन्मर्क्षे पक्षान्ते च विशेषतः ॥ इति गर्गः ।

देव तथा पितरों के कार्योपरान्त और पक्ष की आदि तिथियों में व्रत के दिन जन्म नक्षत्र और अमावस्या तथा पूर्णिमा में बाल नहीं बनवाना चाहिये ।

हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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