बहुत लोग विशेषकर नास्तिक और वामपंथी ऐसा बोलते पाये जाते हैं कि धर्म (हिन्दू) डराता है जो वास्तव में सत्य ही है किन्तु इसकी वास्तविकता वो नहीं है जो बताई जाती है। वह डर जो आत्मकल्याण करने को प्रेरित करे अच्छा है किन्तु आत्मकल्याण तो इनके समझ में आने से रही, इनके समझ में “पीस” आती है और दुनियां में यदि “पीस” देखना चाहते हो तो यह डर ही दे सकता है। दुनियां में जो अशांति, उपद्रव आदि हैं उसका कारण यही है कि यह डर नहीं है। पाप का डर आपको उन कुकर्मों से भी रोकती है जिससे विश्व की व्यवस्था, मानवीयता को कोई भय हो।
शास्त्रों के अनुसार पाप का फल – hinduism punishment for sin
शास्त्रों में पाप और पापों के फल भी मिलते हैं जिनको जानने के पश्चात् ही पाप से बचने का प्रयास संभव है। यदि हम जानेंगे नहीं कि पाप क्या-क्या हैं जिसके लिये हमें दुःख भोगना होगा तो पाप से बचेंगे कैसे ? दुःखों से बचने के लिये, कल्याण प्राप्ति के लिये हमें पाप से बचना आवश्यक है जिसका ज्ञान शास्त्रों से ही प्राप्त होता है। वास्तव में वो सभी नास्तिक-सेकुल्यर-वामपंथी धर्मद्रोही ही नहीं विश्व के लिये आपदा हैं जो लोगों के इस डर को समाप्त करना चाहते हैं और इसके लिये मनुस्मृति (धर्मशास्त्रों) की निंदा करते हैं।
उपरोक्त सन्दर्भ में हमें पाप और फलों के बारे में ज्ञान होना आवश्यक है जो हमें पापकर्म में संलिप्त होने से बचाता है। यहां जो जानकारी दी गयी है उसके सङ्कलनकर्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं और इस आलेख का श्रेय उन्हीं को जाता है।
आगे जो महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है वह आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी द्वारा संकलित है और हमें व्हाट्सप समूह से प्राप्त हुआ है। यहां उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है जिन शीर्षकों के साथ जो साझा किया गया था वो यथावत प्रस्तुत किया गया है। यह आलेख उन सबके लिये अति-उपयोगी है जो आस्थावान सनातनी है और नरक (दुःखों) से बचना चाहते हैं।

विविध पाप और उसके फल
जो पुरुष स्त्री के साथ संयोग करता है जो किसी और की है (अर्थात पर-स्त्री), अथवा ब्रह्मस्वहरण (संन्यासी का धन) चुराता है, वे ब्रह्मराक्षस बनते हैं।
जो झूठ बोलता है वह सड़ा हुआ नाक वाला ( पूतिनास)
चुगली करने वाला सड़ा हुआ मुँह वाला ( पूतिवक्त्र ),
अन्न चुराने वाला अंगहीन होता है,
जो वस्तुमिश्रण पूर्वक धोखा देता है वह विकृत शरीर वाला होता है।
अन्न चुराने वाला रोगी (बीमार) होता है।
वाणी चुराने वाला मूक बनता है।
इस प्रकार विभिन्न कर्मों के अनुसार लोग जड़, मूक, अंधे, बहरे और विकृत शरीर वाले जन्म लेते हैं।
जो व्यक्ति लालच में मणि, मोती, मूंगा, रत्न आदि चुराते हैं, वे लोहे की खान में उत्पन्न होते हैं।
अन्न चुराने वाला चूहा, काँसे (धातु) चुराने वाला हंस, जल चुराने वाला जल में रहने वाला जीव (जैसे बत्तख), शहद चुराने वाला डंक मारने वाला कीड़ा, दूध चुराने वाला कौआ, रस चुराने वाला घोड़ा, घी चुराने वाला नेवला, मांस चुराने वाला गिद्ध, वसाचुराने वाला उल्लू, तेल चुराने वाला पक्षी, नमक चुराने वाला चिरबोलने वाला पक्षी, दही चुराने वाला बगुला, रेशमी वस्त्र चुराने पर तित्तिरि, सूती वस्त्र चुराने पर मेंढ़क, कार्पास (कपास) चुराने पर क्रौंच -पक्षी,
गाय चुराने पर गोह, गुड़ चुराने पर वाग्गुद (एक प्रकार का जीव), सुगंध चुराने पर चुहिया, पत्तेदार सब्जी चुराने पर मोर, श्वान (कुत्ते) के बने पकवान चुराने वाला- शल्यक (एक प्रकार का जीव), अग्नि चुराने वाला बगुला, घर के सामान चुराने वाला गृहकारी पक्षी, लाल वस्त्र चुराने वाला जीवजीवक पक्षी, हिरण चुराने पर भेड़िया, घोड़ा चुराने पर बाघ, फल-फूल चुराने पर बंदर, स्त्री चुराने पर भालू, जल चुराने पर मेंढ़क, वाहन चुराने पर ऊँट, पशु चुराने पर अज (बकरी) ।
जो जैसे भी बलपूर्वक पराया धन लेता है या यज्ञ का हवि (हवन सामग्री) खाता है, वह निश्चित रूप से तिर्यक (नीच योनि) में जन्म लेता है।
मनुष्य जिस भावना और कर्म से जो कार्य करता है, उसी के अनुसार उसे शरीर और फल मिलता है।
याज्ञवल्क्योऽपि – याज्ञवल्क्य के अनुसार पाप का परिणाम
अन्नहर्ताऽमयावी स्यान्मूको वागपहारकः ।
धान्यहर्ताऽतिरिक्ताङ्गः पिशुनः पूतिनासिकः ॥
तैलहृत्तैलपायी स्यात् पूतिवक्त्रस्तु सूचकः ।
आमयावी अजीर्णान्नः, वागपहारकः – पुस्तकापहारी अननुज्ञाताध्यायी च, तैलपायी – कीटविशेष:, सूचकः – सद्दोषसंकीर्तकः । स एव हीनजातौ प्रजायेत रत्नानामपहारकः । पत्रशाकं शिखी हृत्वा गन्धान् चुचुन्दरी शुभान् । चुचुन्दरी राजदुरिताख्यमूषिका । किञ्च, मूषको धान्यहारी स्याद्यानमुष्ट्रः फलं कपिः । जलं प्लवः पयः काको गृहकारी ह्युपस्करम् । मधुदंश: फलं गृध्रो गाङ्गोधाऽग्निं बकस्तथा । श्वित्री वस्त्रं श्वा रसं तु चीरी लवणहारकः इति । गृहकारी – कीटविशेष:, गृहोपस्करं मुसलादि, चीरी – चीर्याख्य उच्चैः स्वरः कीटः ।
अन्नहर्ता आमयावी स्याद्, मूकः वागपहारकः – अन्न चुराने वाला रोगी (अजीर्ण रोग से पीड़ित) होता है, वाणी चुराने वाला (जैसे पुस्तक चुराना या बिना अनुमति अध्ययन करना) मूक बनता है।
धान्यहर्ता अतिरिक्ताङ्गः पिशुनः पूतिनासिकः – धान्य चुराने वाला अतिरिक्त अंगों वाला (शारीरिक विकृति सहित) जन्म लेता है, चुगली करने वाला (पिशुन) सड़ी हुई नाक वाला (पूतिनास) बनता है।
तैलहृत्तैलपायी स्यात्, पूतिवक्त्रस्तु सूचकः – तेल चुराने वाला तेल पीने वाला कीट बनता है, जो दोष प्रकट करता है (सूचक) वह सड़े हुए मुख वाला (पूतिवक्त्र) होता है।
मुख्यशब्दार्थ की व्याख्या:
- आमयावी — रोगी, विशेषतः अजीर्ण रोग वाला व्यक्ति।
- वागपहारकः — वाणी चुराने वाला; जैसे पुस्तक चुराना या गुरु की अनुमति के बिना अध्ययन करना।
- तैलपायी — तेल पीने वाला कीट विशेष।
- सूचकः — दूसरों के दोषों को उजागर करने वाला (सद्दोषसंकीर्तक)।
- चुचुन्दरी — एक प्रकार की मूषिका (चूहिया) जिसे “राजदुरित” कहा गया है, वह सुगंध चुराने पर जन्म लेती है।
- गृहकारी — कीट विशेष जो घर के उपकरण (मुसल, ओखल आदि) चुराने पर होता है।
- चीरी — तीव्र आवाज करने वाला कीट जो नमक चुराने पर जन्मता है।
पुनरुक्त फल कथन (उदाहरण):
- मूषक (चूहा) — धान्य चुराने पर।
- ऊँट — वाहन चुराने पर।
- कपि (बंदर) — फल चुराने पर।
- प्लव (जलीय पक्षी) — जल चुराने पर।
- कौआ — दूध चुराने पर।
- गृध्र (गिद्ध) — फल चुराने पर।
- गाङ्गोढा (गोह) — अग्नि चुराने पर।
- बक (बगुला) — अग्नि चुराने पर भी।
- श्वित्री (एक प्रकार का कुत्ता) — वस्त्र चुराने पर।
- चीरी (तीव्र ध्वनि वाला कीट) — रस और नमक चुराने पर।
अत्र शङ्खो विशेषमाह – शंख के अनुसार पाप का परिणाम
“यहाँ शंख ने विशेष रूप से बताया है कि –”
ब्रह्महा – ब्राह्मण की हत्या करने वाला कुष्ठी कुष्ठ रोगी होता है।
तैजसहारी तेज (तेजस्वी वस्तु या दिव्य गुण) को नष्ट करने वाला मण्डली मण्डल (चक्कर काटता पागल) होता है।
देवब्राह्मणाक्रोशकः देवता और ब्राह्मण को गाली देने वाला खलतिः नीच योनि में जन्म लेता है।
गरदाग्निदावुन्मत्तौ विष , अग्नि या जंगल की आग से ग्रसित होकर पागल होता है।
गुरुप्रतिहन्ता गुरु का अपमान या कष्ट देने वाला अपस्मारी मिर्गी रोगी होता है
गोषा गाय को मारने वाला अन्धः अंधा होता है
धर्मपत्नीं मुक्त्वा अन्यत्र प्रवृत्तः – पत्नी को छोड़कर अन्य स्त्री में प्रवृत्त होने वाला शब्दवेधी प्राणिविशेषः वह शब्द से ही शिकार करने वाला जानवर (जैसे बहरापन लिए पशु) होता है।
कुण्डाशी – दूसरों की जूठन खाने वाला दंशभक्षः डंक खाने वाला कीट बनता है।
देवब्राह्मणस्वापहारी – देवता या ब्राह्मण का धन चुराने वाला पाण्डुरोगी पीलिया (पाण्डु) रोगी होता है।
न्यासापहारी – अमानत में रखा धन चुराने वाला काणः एक आंख से अंधा होता है।
स्त्रीवाक्योपजीवी – स्त्री की बातों पर जीने वाला (स्त्री के कहे अनुसार अनैतिक काम करने वाला) षण्डः नपुंसक होता है।
कौमारदारत्यागी – बालविवाहिता पत्नी को त्यागने वाला दुर्भगः दुर्भाग्यशाली होता है।
मृष्टैकाशी – स्वादिष्ट चीजों के लिए अत्यधिक लालची वातगुल्मी वात रोग और पेट की गाँठ से पीड़ित होता है।
अभक्ष्यभक्षकः – अपवित्र/निषिद्ध वस्तुएँ खाने वाला गण्डमाली गिल्टी (गांठों) वाला रोगी होता है।
ब्राह्मणीगामी – ब्राह्मण की पत्नी से व्यभिचार करने वाला निर्बीजः निःसंतान (बाँझ या नपुंसक) होता है।
क्रूरकर्मा – क्रूर कर्म करने वाला वामनः बौना होता है।
वस्त्रापहारी – वस्त्र चुराने वाला पतङ्गः पतंगा बनता है (जो दीपक पर मरता है)
शय्यापहारी – बिस्तर चुराने वाला क्षपणकः जटाधारी या कपटी संन्यासी बनता है।
शङ्खशुक्त्यपहारी – शंख या सीप चुराने वाला कपाली शवों की खोपड़ी रखने वाला (श्मशानवासी)
दीपापहारी – दीपक चुराने वाला कौशिकः कौशिक नामक प्रेत या अपवित्र जीव बनता है।
मित्रध्रुक् – मित्र को धोखा देने वाला क्षयी क्षय रोग (टीबी) से पीड़ित होता है।
मातापित्रोराक्रोशकः – माता-पिता को गाली देने वाला कारण्डवः जलपक्षी (नीच योनि) में जन्म लेता है।
हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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