सनातन धर्म में नित्यकर्म: एक विस्तृत अध्ययन | आवश्यकता या अनिवार्यता - Nitya Karma in Hindi

सनातन धर्म में नित्यकर्म: एक विस्तृत अध्ययन | आवश्यकता या अनिवार्यता – Nitya Karma in Hindi

सनातन धर्म में नित्यकर्म: एक विस्तृत अध्ययन | आवश्यकता या अनिवार्यता – Nitya Karma in Hindi – आवश्यकता यह है कि क्या हम वर्त्तमान में भी परतंत्र हैं और यदि परतंत्र हैं तो स्वतंत्र होने का प्रयास करना चाहिये। यदि स्वतंत्र हो गए हैं तो अपने धर्म-कर्म का पालन करना आरम्भ करना चाहिये। नित्यकर्म को आवश्यक नहीं अनिवार्य समझना चाहिये और स्वयं भी सीखकर प्रारम्भ करना चाहिये, आत्मकल्याण का प्रयास करना चाहिये।

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शाखारण्ड : एक महत्वपूर्ण विश्लेषण

शाखारण्ड : एक महत्वपूर्ण विश्लेषण – Shakharand

शाखारण्ड : एक महत्वपूर्ण विश्लेषण – Shakharand : शाखारण्ड दोष का तात्पर्य भी पतित होना है, शाखारण्ड हव्य-कव्य में अनधिकृत हो जाता है, और यदि उपनयन करके भी शाखारण्ड ही बनाना हो तो उस उपनयन का कोई महत्व नहीं है। व्रात्य की तुलना में शाखारण्ड दोष का मार्जन सरल है अंतर मात्र यही है।

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कर्मकांड में पत्नी की आवश्यकता

कर्मकांड में पत्नी की आवश्यकता – karmkand me patni

कर्मकांड में पत्नी की आवश्यकता – karmkand me patni : यहां हम सभी कर्मों में पत्नी के आवश्यकता शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ समझेंगे। यह आलेख मात्र यह नहीं बताता है कि पत्नी कब किस दिशा में हो अपितु यह भी बताता है कि सभी कर्मों में पत्नी आवश्यक होती है, और जिस कर्म में सपत्नीक न हो उस कर्म में विकल्प प्रयोग किया जाता है।

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शिखा विधान : शिखा का महत्व - shikha ka mahatva

शिखा विधान : शिखा का महत्व – shikha ka mahatva

शिखा विधान : शिखा का महत्व – shikha ka mahatva – वर्त्तमान के कुछ दशकों में धर्मनिरपेक्षता रूपी राजनीतिक षड्यंत्र के द्वारा धर्म की अपार क्षति की गयी है और शिखा धारण करना पुरानी सोच सिद्ध कर दिया गया, आधुनिकता की पहचान शिखाहीन होना सिद्ध कर दिया गया। तथापि शनैः शनैः जागरूकता की भी वृद्धि हो रहा है और षड्यंत्र को समझते हुये पुनः शिखा आदि के प्रति जागरूकता में वृद्धि भी देखी जा रही है।

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कर्मकांड में प्राणायाम विधान - pranayama kya hai

कर्मकांड में प्राणायाम विधान – pranayama kya hai

कर्मकांड में प्राणायाम विधान – pranayama kya hai : प्रत्येक कर्म के आरम्भ में प्राणायाम करना आवश्यक कहा गया है। कर्मकांड सीखने वालों के लिये प्राणायाम का योग संबंधी ज्ञान हो अथवा न हो किन्तु कर्मकांड के लिये जो सामान्य विधान है उसका ज्ञान होना आवश्यक है। इसकी आवश्यकता मात्र स्वयं हेतु नहीं अपितु यजमानों को सिखाने के लिये भी है।

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आसन सर्वस्व अर्थात सप्रमाण आसन संबंधी विस्तृत विमर्श - Asan Gyan

आसन सर्वस्व अर्थात सप्रमाण आसन संबंधी विस्तृत विमर्श – Asan Gyan No. 1

आसन सर्वस्व अर्थात सप्रमाण आसन संबंधी विस्तृत विमर्श – Aasan Gyan : कर्मकांड में आसन का यह भाव भी ग्रहण किया जाता है कि किस प्रकार से बैठे, किन्तु मुख्य भाव जिस पर बैठते हैं उससे ग्रहण किया जाता है। बिना आसन के कर्मकांड में कुछ ही कर्म होते हैं जिसका उल्लेख उन कर्मों में अंकित रहता है जैसे बड़ी प्रतिमाओं की पूजा जो बैठकर नहीं की जा सकती। आसन कर्मकांड में विशेष महत्वपूर्ण विषय है और इसके बारे में विस्तृत जानकारी प्रत्येक कर्मकांडी को रखनी चाहिये।

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कर्मकांड और रूढ़िवादिता या पिछड़ापन

कर्मकांड और रूढ़िवादिता या पिछड़ापन

कर्मकांड और रूढ़िवादिता या पिछड़ापन : इस वेबसाइट पर कर्मकांड के गूढ़ विषयों की गंभीर चर्चा की जाती है जो आपके कुशल कर्मकांडी बनने में सहायक सिद्ध हो सकती है। कुशल कर्मकांडी बनने में एक सबसे बड़ी बाधा है रूढ़िवादी कहलाने का भय। यदि आप एक कुशल कर्मकांडी बनना चाहते हैं तो यह आलेख आपके उसी भय का निवारण करने वाला है।

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धर्म और विज्ञान अर्थात धर्मकृत्य और वैज्ञानिक रहस्य - Dharm aur Vigyan

धर्म और विज्ञान अर्थात धर्मकृत्य और वैज्ञानिक रहस्य – Dharm aur Vigyan

धर्म और विज्ञान अर्थात धर्मकृत्य और वैज्ञानिक रहस्य – Dharm aur Vigyan : धर्म और धर्मकृत्यों की प्रामाणिकता शास्त्र से सिद्ध होती है किसी अन्य विधि से नहीं। वर्त्तमान में विज्ञान द्वारा कुछ विषयों की सिद्धि करने का प्रयास किया जाता है ये उन विषय के ज्ञाताओं अर्थात वैज्ञानिकों का विषय हो सकता है किन्तु कर्मकांडी या ज्योतिषी का विषय नहीं है।

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शुद्धि विधान : दाह, मार्जन, प्रक्षालन, प्रोक्षण इत्यादि

शुद्धि विधान : दाह, मार्जन, प्रक्षालन, प्रोक्षण …. Shuddhi Vidhan

शुद्धि विधान : दाह, मार्जन, प्रक्षालन, प्रोक्षण …. Shuddhi Vidhan – ऊर्ण, रुई आदि यथा स्वेटर, कम्बल, रजाई, गद्दा आदि की शुद्धि प्रोक्षण मात्र से ही होती है। यदि अधिक दोष हो तो धूप में तपाने से प्रोक्षण करके शुद्धि होती है। वेणूपस्कर (बांस के पात्र), शण की वस्तुयें, फल, चर्म की ग्राह्य वस्तुयें यथा आसन, तृण, काष्ठ रज्जु आदि अभ्युक्षण के द्वारा शुद्ध होते हैं। स्पर्श शुद्धि का विधान है।

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प्रोक्षण, अभ्युक्षण और वोक्षण तीनों प्रकार को समझें - Sikta karana

शुद्धिकरण : प्रोक्षण, अभ्युक्षण और वोक्षण तीनों प्रकार को समझें – 3 Sikta karana

शुद्धिकरण : प्रोक्षण, अभ्युक्षण और वोक्षण तीनों प्रकार को समझें – Sikta karana : पवित्रीकरण में जल से सिक्त करने का विशेष महत्व होता है। किन्तु इस तथ्य को पुनः ध्यान में रखना आवश्यक है कि सिक्त सभी वस्तुओं को करना होता है किन्तु उसका तात्पर्य पवित्रीकरण होता है। शुद्धिकरण की जो सामान्य अन्य विधियां भस्म, अम्ल, जलादि द्वारा मार्जन करने की होती है मार्जनीय वस्तु का मार्जन अनिवार्य होता है।

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