स्त्री धर्म को समझें स्नान शृंगार विधान | stri dharm – 5

स्त्री धर्म को समझें स्नान शृंगार विधान | stri dharm - 5

स्त्री धर्म (stri dharm) इतना गंभीर विषय है जो घर-घर में चर्चा करनी चाहिये किन्तु देश की मीडिया की म्लेच्छवादिता देखिये ये अनिरुद्धाचार्य पर ऐसी बातों के लिये टूट पड़े, शिकार करने के लिये वेश्यायों को साथ लेकर निकल गये। स्नान-शृंगार आदि का विधान जो स्त्रियों के लिये वर्णित है उसकी चर्चा यहां कर रहे हैं और यह आशा करते हैं कि टेस्ट ड्राइव करने वाली, मुंह मारने वाली वेश्याओं को भी ऑंखें खोलने वाली होगी।

स्त्री धर्म पद्धति में स्नान-शृंगार के यदि एकाध महत्वपूर्ण बिंदुओं को चर्चा में लें तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि ये माता-मामा (दादी)-नानी-बुआ-मौसी-मामी आदि का ही दायित्व है कि अपने घर की बच्चियों को ज्ञान प्रदान करें और यह आलेख जो लोग पढ़ें वो लोग अधिकतम लोगों तक साझा करने का प्रयास करें। आजकल नग्नता परोसी जा रही है और लोगों को ऐसा बताया जा रहा है कि क्या पहने ये तुम्हारी स्वतंत्रता है। ऐसा करने वालों की सोच में भारतीयता का अभाव है और पाश्चात्य कुसंस्कृति का प्रभाव है।

स्त्रियों के लिये दो काल के अतिरिक्त स्तन का अनावरण निषिद्ध है और वो दो काल हैं बच्चों को स्तनपान कराना एवं रतिक्रिया। इन दोनों क्रियाओं के अतिरिक्त स्तन के वस्त्र नहीं हटाये जाने चाहिये किन्तु नग्न होकर स्नान करना सिखाया जा रहा है और इसे आधुनिकता कही जाती है। शृंगार सौभाग्यवती स्त्री के लिये अनिवार्य है और शृंगार में भी एक विशेषता है कि पति के सामने शृंगार नहीं करना चाहिये। और भी ढेरों बातें हैं जिनकी सप्रमाण चर्चा यहां की गयी है। और यह आपका ही दायित्व है कि अधिकाधिक लोगों तक आलेख को पहुंचाया जाय, क्योंकि गूगल तो अवरोध ही उत्पन्न करेगा।

सामान्यतः पुरुषों के लिये धर्म, कर्म, मर्यादा, आचरण आदि शास्त्रों में सर्वत्र भरे-परे हैं किन्तु स्त्रियों के लिये नहीं हैं ऐसा नहीं है। स्त्रियों के लिये भी कर्तव्याकर्तव्य का शास्त्रों में निर्धारण किया गया है और जो भी आध्यात्मिक चर्चा करते हैं उनके लिये स्त्रियों के धर्म, कर्म, मर्यादा, आचरण आदि की चर्चा भी आवश्यक है। यदि चर्चा ही नहीं करेंगे तो आधुनिकता के नाम पर दुर्गंध ही फैलता रहेगा।

यहां स्त्री धर्म से संबंधित शास्त्रोक्त चर्चा की गयी है जिसके संकलनकर्त्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं एवं हम उनका आभार प्रकट करते हैं। यह आलेख कई भागों में है एवं आगे अन्य लेख भी आ सकते हैं, यहां द्वितीय भाग दिया गया है।

आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी
आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी

गृह सम्मार्जन

ब्रह्मक्षत्रविशां चैव मन्त्रवत् स्नानमिष्यते।
तूष्णीमेव हि शूद्रस्य स्त्रीणां च कुरुनन्दने ॥६४॥

ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्ग के लिए मंत्रोच्चारपूर्वक स्नान करना उचित माना गया है; परंतु हे कुरुनन्दन! शूद्रों और स्त्रियों के लिए मौन रहते हुए स्नान करना ही विधिसम्मत है।

अपोवगाहनं स्नानं विहितं सार्वकामिकम् ।
मन्त्रवत्प्रोक्षणं चापि द्विजातीनां विशिष्यते ॥६५॥

जल में प्रवेश करके स्नान करना सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला कहा गया है; किंतु द्विजातियों (ब्राह्मण आदि) के लिए मंत्रोच्चारण सहित जल से शरीर का प्रोक्षण करना विशेष रूप से उचित है।

नैकाकिनी क्वचिद्भूया न नग्मा स्नाति वै क्वचित् ॥६६॥

कोई स्त्री कभी अकेली न हो और न ही नग्न होकर कहीं स्नान करे – ऐसा निषेध है।

यत्र पुंसः सचेलं स्यात् स्नानं तत्र सुवासिनी ।
कुर्वीतै वाशिरः स्नानं शिरोरोगी जटी तथा ॥६७॥

जहाँ पुरुष वस्त्र पहनकर स्नान कर रहे हों, वहाँ विवाहित स्त्री भी वस्त्र सहित स्नान करे। साथ ही, सिर रोग से पीड़ित व्यक्ति और जटाधारी (जटा वाले) को भी सिर का स्नान अवश्य करना चाहिए।

अरुन्धतीं प्रत्युमानदीजलं प्रस्रवणं प्रशस्तं सोम-नन्दिनि ।
शुभे तटाके वाप्यादौ विस्तीर्णे जलजायुते ।
गत्वा स्नानं प्रशस्तं तु दिवैव खलु सर्वदा ॥६८॥

हे सोमनन्दिनि! अरुंधती ने कहा है कि पवित्र नदी, जलस्रोत, सुंदर तालाब, या विस्तृत जलराशि में स्नान करना सभी कालों में शुभ और श्रेष्ठ होता है।

अलाभे त्ववरुद्धा स्त्री घटस्नानं समाचरेत् ।
नवैश्व कुम्भैः स्नातव्यं विधिरेष सनातनः ॥६९॥

यदि नदी या जलस्रोत उपलब्ध न हो तो स्त्री को कलश या घड़े से स्नान करना चाहिए। और नव (नवीन, पूर्ण) कलश से स्नान करना सनातन विधि में उचित माना गया है।

एवं स्नात्वा ततः कुर्यादाचम्य च विधानतः ।
उत्थाय वाससी शुक्ले शुद्धे तु परिधाय च ॥७०॥

इस प्रकार विधिवत स्नान करके, फिर आचमन करके, श्वेत और शुद्ध वस्त्रों को धारण करना चाहिए।

स्नात्वाऽनुपहतं वस्त्रं परिदध्याद्यथाविधि ॥७१॥

स्नान के पश्चात् विधिपूर्वक बिना फटा हुआ (अखंडित) वस्त्र धारण करना चाहिए।

न नाभिं दर्शये दागुल्फाद्वासः परिदध्या न स्तनौ विवृतौ ॥७२॥

वस्त्र पहनते समय न तो नाभि को दिखाना चाहिए, न ही एड़ियों से नीचे वस्त्र होना चाहिए, और न ही स्तनों को उघाड़ना चाहिए।

तैलाभ्यङ्गं तथा स्नानं शरीरोद्वर्तनक्रियाम् ।
मार्जनं चैव दन्तानां मलकानां प्रसाधनम् ॥
भोजनं वमनं निद्रां परिधानं च वाससाम्।
प्रारम्भं मण्डनानां च न कुर्यात्पश्यति प्रिये ॥७३॥

स्त्रियों को पति के सामने कभी शरीर पर तेल लगाना, स्नान करना, शरीर मलना, दाँतों की सफाई, शृंगार, भोजन, उल्टी करना, सोना, वस्त्र पहनना और सजने-सँवरने के सभी कार्य नहीं करने चाहिए।

हरिद्रां कजलं चैव सिंदुरं कुङ्कुमं तथा ।
कूर्पासकं च ताम्बूलं मङ्गल्याभरणं शुभम् ॥
केशसंस्कारकबरीकरकर्णविभूषणम् ।
भर्तुरायुष्य मिच्छन्ती दूषयेन पतिव्रता ॥७४॥

जो सती स्त्री अपने पति की आयु की कामना करती है, वह प्रतिदिन हल्दी, काजल, सिन्दूर, कुमकुम, चूड़ी, ताम्बूल, मंगलसूचक आभूषण, बालों की सज्जा और कानों के आभूषण धारण करती है।

सेवमाने दृढं सूर्ये दिशमन्तकसेविताम् ।
विहीनतिलकेव स्त्री नोत्तरा दिक् प्रकाशते ॥७५॥

जब सूर्य प्रबल रूप से अस्ताचल की ओर बढ़ रहा हो, उस समय उत्तर दिशा एक ऐसी स्त्री के समान प्रतीत होती है जो तिलक से रहित हो — अर्थात जैसे विधवा हो। यह दर्शाता है कि तिलक रहित स्त्री उत्तर दिशा जैसी होती है।

कञ्चुकं कण्ठसूत्रञ्च कर्णपत्रे तथाऽञ्जनम् ।
काचकाभरणं चैव हरिद्रास्नानपुण्ड्रकम् ॥
केशप्रसाधनं चैव पादनासविभूषणम् ।
ताम्बूलादीनि लक्ष्माणि प्रोच्यन्ते पुण्ययोषिताम् ॥७६॥

चोली, कण्ठसूत्र, कानों के आभूषण, काजल, कांच के कंगन, हल्दी का स्नान, तिलक, बालों की साज-सज्जा, पांव और नाक के आभूषण, ताम्बूल आदि पुण्यशील स्त्रियों की विशेषताएँ बताई गई हैं।

मणिबन्धे च कण्ठे च काचकाभरणैर्युता ।
सा नारी पुण्यचरिता तस्याः पाकः शुचिः स्मृतः ॥
करमूले कण्ठमूले काचाभरणवर्जिता ।
सा नारी विधवा ज्ञेया जन्मजन्मान्तरेष्वपि ॥७७॥

जिस स्त्री के हाथ और गले में कांच के आभूषण होते हैं, वह पुण्यवती मानी जाती है और उसका अन्न भी शुद्ध माना जाता है; किन्तु जिनके हाथ और गले में कांच के आभूषण न हों, वह स्त्री विधवा मानी जाती है, चाहे वह इस जन्म में हो या किसी पूर्वजन्म में।

क्रमशः…..

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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