पंचमहापाप में से संकरीकरण आदि पापों को जानिये – sankarikaran kya hai

पंचमहापाप में से संकरीकरण आदि पापों को जानिये - sankarikaran kya hai

पंचमहापापों में महापातक, अतिपातक और उपपातक के पश्चात संकरीकरण (sankarikaran) आदि पापों का क्रम आता है और इसमें और भी अनेक पाप श्रेणी हैं जो समान श्रेणी के हैं। इस आलेख में हम संकरीकरण, अपात्रीकरण, मलावह, जातिभ्रंशकर आदि पापों की चर्चा की गयी है। यह चर्चा मनु के वचन और विष्णु के वचनों को आधार मानकर की गयी है।

उपरोक्त सन्दर्भ में हमें संकरीकरण आदि पापों को जानना आवश्यक है जो हमें संलिप्त होने से बचाता है। यहां जो जानकारी दी गयी है उसके सङ्कलनकर्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं और इस आलेख का श्रेय उन्हीं को जाता है।

आगे जो महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है वह आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी द्वारा संकलित है और हमें व्हाट्सप समूह से प्राप्त हुआ है। यहां उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है जिन शीर्षकों के साथ जो साझा किया गया था वो यथावत प्रस्तुत किया गया है। यह आलेख उन सबके लिये अति-उपयोगी है जो आस्थावान सनातनी है और नरक (दुःखों) से बचना चाहते हैं।

विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी
विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी

संकरीकरण आदि पाप/पातक

मनु का मत

जातिभ्रंशकर : ब्राह्मणस्य रुजः कृत्वा घ्रातिरघ्रेयमद्ययोः। जैह्म्यं च मैथुनं पुंसि जातिभ्रंशकरं स्मृतम्॥

ब्राह्मण को हाथ से या लाठी (या किसी भी तरह से) से पीड़ा पहुँचाना, अत्यन्त दुर्गन्ध युक्त (लहसुन, विष्टा आदि) और मदिरा का सूँघाना, दुष्टता, पुरुष के साथ मैथुन करना, ये सभी जातिभ्रंशकर (मनुष्य का अपनी जाति, आश्रम आदि से भ्रष्ट होना) पाप हैं।

सङ्करीकरण : खराश्वोष्ट्रमृगैभानामजाविकवधस्तथा। सङ्करीकरणं ज्ञेयं मीनाहिमहिषस्य च॥

गधा, घोड़ा, ऊँट, मृग, हाथी, बकरा, भेड़, मछली, साँप भैँस इनका वध संकरीकरण पाप है।

अपात्रीकरण : निन्दितेभ्यो धनादानं वाणिज्यं शूद्रसेवनम्। अपात्रीकरणं ज्ञेयमसत्यस्य च भाषणम्॥

निन्दितों से धन लेना, रोजगार करना, शूद्रों की सेवा करना और झूँठ बोलना ये अपात्रीकरण पाप हैं।

मलावह/मालीनिकरण : कृमिकीटवयोहत्या मद्यानुगतभोजनम्।
फलेधः कुसुमस्तेयमधैर्यं च मलावहम्॥

कीड़ा, कीट, (चींटी आदि) पक्षियों की हत्या करना, मदिरा के साथ भोजन करना, फल, लकड़ी, फूल की चोरी और अधैर्य (असंतोष) मलावह (मलिनीकरण) पाप हैं।

विष्णुःस्मृति के अनुसार

ब्राह्मणस्य करणम्, अघ्रेयमद्ययोर्ग्रातिः, जैह्म्यं पशुष्वयोनिषु पुंसि च मैथुनम् इत्येतानि जातिभ्रंशकराणि : ब्राह्मण को कष्ट देना, हेय मद्य का सेवन या स्पर्श, पशु योनियों या पुरुषों से मैथुन — ये सभी कर्म जाति के पतन का कारण हैं।

ग्रामारण्यपशूनां हिंसनं सङ्करीकरणम्गाँ : गाँव और जंगल के पशुओं की हिंसा (मारना या सताना) – यह भी संकरीकरण (धार्मिक दृष्टि से अनुचित कर्म) में गिना गया है।

निन्दितेभ्यो धनादानं वाणिज्यं कुसीदजीवनम् असत्यभाषणं शूद्रसेवनम् इत्यपात्रीकरणानि : पापकर्मियों से धन लेना, व्यापार या सूद पर जीविका चलाना, झूठ बोलना और शूद्र की सेवा करना — ये अपात्रीकरण (अपात्र करने वाले कर्म) हैं।

पक्षिणां जलचराणां जलजानां च घातनं, कृमिकीटघातनं मद्यानुगतभोजनम् इति मलावहानि : पक्षियों, जलचर प्राणियों, जल में उत्पन्न जीवों, कीड़ों-मकोड़ों की हत्या तथा शराब के प्रभाव में किया गया भोजन — ये सब मलावह (अशुद्धता उत्पन्न करने वाले) कर्म हैं।

यदनुक्तं तत्प्रकीर्णकमिति। तदेवं नवविधानि पापानि : जो दोष ऊपर स्पष्ट रूप से नहीं गिनाए गए हैं, वे प्रकीर्णक (मिश्र या विविध पाप) माने जाते हैं।

हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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