विवाह मुहूर्त : रात में विवाह करने वाले अवश्य जान लें

विवाह मुहूर्त : रात में विवाह करने वाले अवश्य जान लें विवाह मुहूर्त : रात में विवाह करने वाले अवश्य जान लें

वर्त्तमान काल में एक प्रचलन चला दिया गया है जो प्राचीन काल से चलते आ रहा है उसे गलत कहना, कुतर्क करके गलत सिद्ध करना और उसके विरुद्ध सिद्धांत सिद्ध करना। इसमें एक विषय विवाह काल को लेकर आता है कि रात में विवाह करना गलत है सभी संस्कार दिन में होते हैं तो विवाह भी दिन में ही होने चाहिये। विवाह मुहूर्त के संबंध में एक बड़ा विचारणीय विषय यह है कि रात करना गलत है क्या ? इस आलेख में हम इस विषय की प्रामाणिक चर्चा करेंगे और गंभीरता से समझने का प्रयास करेंगे ताकि भविष्य में कोई कुतर्कों द्वारा दिग्भ्रमित न कर सके।

धर्म से संबंधित संस्थायें-संगठन जो मुख्यतः धर्मविरुद्ध चर्चा करते रहते हैं द्वारा रात में विवाह का व्यापक विरोध किया जाता है और कुतर्कों द्वारा यह सिद्ध किया जाता है कि सभी संस्कार दिन में ही किये जाते हैं, एक मात्र विवाह ही रात में क्यों करते हैं ? और आगे जाकर इसे मुगलकाल से जोड़ दिया जाता है।

इस विषय के दुष्प्रचार में संघ की भी बड़ी भूमिका देखी जाती है और हो भी क्यों न, वो किसी शास्त्र को थोड़े न स्वीकार करते हैं वो तो आर्य समाजियों के कुतर्कों का आश्रय ग्रहण करते हैं।

समस्या इससे आगे तब बढ़ जाती ही जब व्यास पीठ पर बैठकर कोई कथा वाचक भी ऐसी ही बातें करने लगे और ऐसा देखने को भी मिला है। इसके पीछे कारण यही प्रतीत होता है कि उनका संबंध संघ से हो और संघ ने उनको दिग्भ्रमित कर दिया एवं उन लोगों ने शास्त्रान्वेषण रहित होकर उसी विचार को आगे बढ़ाना आरंभ कर दिया।

व्यासपीठ पर बैठने वाले किसी भी कथावक्ता का धर्म तो यह है कि वो शास्त्रान्वेषण करें और शास्त्रसिद्ध चर्चा करें, प्रामाणिक चर्चा करें। किन्तु लोकप्रसिद्धि की बड़ी आकांक्षा, बड़े कथावाचक/विद्वान आदि कहलाने की आकांक्षा आदि के कारण हो, कुतर्क का आश्रय ग्रहण करने लगते हैं।

जो संघ द्वारा दिग्भ्रमित कर दिये जाते हैं वो तो व्यासपीठ पर बैठने के अधिकारी ही नहीं होते। इसी प्रकार जो कर्मकांडी पण्डित सरलता दिग्भ्रमित कर दिये जाते हैं और शास्त्रान्वेषण न करके उसी प्रकार के कुतर्क करने लगें, वो पंडित/विद्वान कहलाने के अधिकारी नहीं हो सकते।

पवित्रीकरण संबंधी ज्ञान की जांच

रात में निषिद्ध

रात्रौ स्नानं न कुर्वीत दानं चैव विशेषतः । नैमित्तिकन्तु कुर्वीत स्नानं दानश्च रात्रिषु ॥

स्मृति वचन कहकर जो प्रमाण मिलता है वो ऊपर वर्णित है जिसके अनुसार रात में स्नान-दान न करे – “रात्रौ दानं न शंसन्ति विना चाभयदक्षिणाम्”, किन्तु उसी में आगे यह भी स्पष्ट किया गया है कि नैमित्तिक स्नान-दान रात्रि में भी करे – “नैमित्तिकन्तु कुर्वीत स्नानं दानश्च रात्रिषु”..

पुनः आगे और स्पष्ट किया गया है :

यज्ञे विवाहे यात्रायां तथा पुस्तकवाचने । दानान्येतानि शस्तानि रात्रौ देवालये तथा ॥
ग्रहणोद्वाहसङ्क्रान्ति यात्रार्तिप्रसवेषु च । श्रवणे चेतिहासस्य रात्रौ दानं प्रशस्यते ॥

यहां यह बताया गया है कि यज्ञ (यज्ञान्त) विवाह, यात्रा, पुस्तकवाचन आदि के निमित्त एवं देवालय में रात को भी दान किया जा सकता है। ग्रहण, विवाह, संक्रांति, यात्रा, आर्त, प्रसव, इतिहास श्रवण (कथा/पुराण) आदि के अवसर पर रात में भी दान प्रशस्त होता है।

रात्रि में निषेध का एक अन्य प्रमाण महाभारत से यह प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें सर्वप्रथम “रात्रौ दानं न शंसन्ति” कहा गया है और यदि इतने को ग्रहण करें तो सभी प्रकार के दान (कन्यादान सहित) रात में निषिद्ध हो जायेंगे किन्तु इसे पूरा समझना अपेक्षित होता है :

रात्रौ दानं न शंसन्ति विना चाभयदक्षिणाम् । विद्यां कन्यां द्विजश्रेष्ठ दीपमन्नं प्रतिश्रयम् ॥

किञ्चित अंतर के साथ उक्त प्रमाण विष्णुधर्मोत्तरपुराण/खण्डः ३/अध्याय ३०१/श्लोक ३/ प्राप्त होता है जो इस प्रकार है और दोनों का ही भाव समान है :

रात्रौ दानं न शंसन्ति विना त्वभयदक्षिणाम् । विद्यां कन्यां द्विजश्रेष्ठ दीपमन्नं प्रतिश्रयम् ॥

रात में दान प्रशस्त नहीं होता है, किन्तु इन विषयों के अतिरिक्त : अभयदान, दक्षिणा, विद्या, कन्या, दीप, अन्न और आश्रय।

प्रमाणों के आधार पर इतना तो सिद्ध हो गया है कि रात में दान का निषेध तो है किन्तु कन्यादान या विवाह का निषेध कदापि नहीं है अर्थात रात्रिनिषेध का सूत्र विवाह पर प्रभावी नहीं है। इस प्रकार प्रथम विषय जो है रात में विवाह प्रशस्त है अथवा निषिद्ध उसे हमने शास्त्रोक्त प्रमाण के आधार पर समझा और किसी विद्वान, पंडित, कथावाचक आदि का यही धर्म होता है कि वो शास्त्रोक्त प्रमाणों के आधार पर विहित-निषिद्ध को ज्ञात करे और शास्त्रज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित करे न कि किसी के रचे हुये मनगढंत कुतर्कों द्वारा।

इसको स्पष्ट करना इसलिये आवश्यक होता है कि मुख्य रूप से संघ कर संघ समर्थित कथावक्ता, कर्मकांडी आदि रात्रि विवाह का निषेध करते हुये यह कुतर्क करते दिख जाते हैं कि आक्रांताओं के अत्याचार से पीड़ित लोग विवाह दिन में न करके रात में करते थे। सभी संस्कार दिन में होते हैं तो विवाह भी दिन में ही होने चाहिये। इसी कुतर्क के समर्थन में शास्त्रोक्त प्रमाण होना तो संभव नहीं है किन्तु तुलसीदास आदि की रचनाओं में तो वर्णन मिलना चाहिये था। किसी भी प्रकार के प्रमाण से रहित होकर मनगढंत कुतर्कों द्वारा सिद्धि करना धूर्तता को सिद्ध करता है।

उपरोक्त चर्चा में हम जो देखते हैं वो यही कि देश भर में विवाह रात में ही किया जाता है, कुछ विशेष संस्थाओं/संगठनों से जुड़े व्यक्तियों/अपवादों को यदि त्याग दें। सोचिये एक मात्र विवाह ही था जो मुग़ल आक्रांताओं के भय से भयभीत होकर हिन्दुओं ने रात में करना आरम्भ कर दिया अन्य कुछ भी नहीं। क्या उपनयन से आक्रांताओं को समस्या नहीं थी, क्या यज्ञ से समस्या नहीं थी, क्या जप से समस्या नहीं थी, क्या तीर्थाटन से समस्या नहीं थी।

यदि इस कुतर्क में थोड़ी भी सत्यता होती तो सभी धर्माचरण रात में ही हो रहे होते। उपरोक्त कुतर्क तो तर्क मात्र से भी खंडित हो जाता है जबकि हम यहां प्रामाणिक चर्चा भी कर रहे हैं। प्रामाणिक चर्चा में तो इससे आगे का भी पक्ष मिलता है जो यह सिद्ध करता है कि ये कुतर्की जो हैं, सनातन के प्रछन्न शत्रु हैं, “मुंह में राम बगल में छुड़ी रखते हैं” क्योंकि कुतर्कों से ये जो स्थापित करने का कुप्रयास करते हैं प्रमाण उसके पूर्णतः विपरीत मिलता है और वो है विवाह का निषेध रात्रि में नहीं दिन में होने का प्रमाण।

विवाह का निषेध दिन में है या रात में

विवाह का निषेध रात में नहीं है अपितु रात में विवाह प्रशस्त है इसको समझने के उपरांत ऊपर जो चित्रात्मक अंश प्रस्तुत किया गया है वो ज्योतिष तत्व सुधार्णव का है इसमें ज्योतिःसारसंग्रह को उद्धृत करते हुये “विवाहे तु दिवाभागे कन्या स्यात्पुत्रवर्जिता। विरहानल दग्धा सा नियतं स्वामिघातिनी॥” कहा गया है; अर्थात दिन में विवाह होने से कन्या पुत्रहीना होती है, वह विवाहानल से दग्ध होकर स्वामीघातिनी संज्ञक होती है अर्थात उसके पति के मृत्यु की संभावना भी बनती है।

\अब सोचिये समस्या कितनी विकट है विवाह का निषेध शास्त्रों द्वारा दिन में ही प्राप्त होता है और रात में प्रशस्त होना। किन्तु छल करने वाले कुतर्क करके रात में निषेध कहते हुये दिन में विवाह करने के लिये प्रेरित कर रहे हैं। कितना बड़ा षड्यंत्र किया जा रहा है यह सोचना भी भयावह है। वो लोग तो लांछन के अधिकारी, निंदा के पात्र अवश्य हैं जो कथावाचक बनकर व्यासपीठ पर बैठकर इस प्रकार के कुतर्क का अज्ञान प्रसारित करते हैं, वो कर्मकांडी पंडित भी निन्दित की श्रेणी में ही गण्य हैं जो ऐसे कुतर्क रचते हैं किन्तु शास्त्रों का अवलोकन नहीं करते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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