यदि हम ब्रह्महत्या (brahmahatya) कहते हैं तो इसका तात्पर्य होता है ब्राह्मण की हत्या करने से लगने वाला दोष/पाप। इन्द्र ने जब त्रिशिरा का वध किया था तो इन्द्र को ब्रह्महत्या लगी थी। पुनः वृत्रासुर की हत्या करने पर भी ब्रह्महत्या लगी जिसका ४ भागों में विभाजन किया गया और पृथ्वी, जल, वृक्ष व स्त्री चारों को एक-एक भाग दिया गया। अन्य भी अनेकों पाप होते हैं जो ब्रह्महत्या के समान कहे गये हैं और यहां हम उन्हीं को समझेंगे।
जानिये उन पापों को जो ब्रह्महत्या के समान है – brahmahatya
आगे की चर्चा करें उससे पूर्व एक प्रमुख तथ्य को भी समझना आवश्यक है जो वृहद्धर्म पुराण का है : ज्योतिष, व्यवहार, प्रायश्चित्त और चिकित्सा संबंधी निर्देश/उपदेश यदि बिना शास्त्र के करें तो वह व्यक्ति ब्रह्मघाती होता है अर्थात वह पाप ब्रह्महत्या के समान समझना चाहिये।
ज्योतिषं व्यवहारं च प्रायश्चित्तं चिकित्सकम्। विना शास्त्रेण यो ब्रूयात् तमाहुर्ब्रह्मघातकम्॥
यह आलेख उन बड़े पापों के बारे में बताता है जिसे सामान्य समझा जाता है और वर्त्तमान युग में तो जनसामान्य इसे पाप मानते भी हैं अथवा नहीं यह संशय है जबकि ये पाप नहीं ब्रह्महत्या के समान पाप है। आईये जानें
उपरोक्त सन्दर्भ में हमें ब्रह्महत्या के समान पापों को भी जानना आवश्यक है जो हमें संलिप्त होने से बचाता है। यहां जो जानकारी दी गयी है उसके सङ्कलनकर्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं और इस आलेख का श्रेय उन्हीं को जाता है।
आगे जो महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है वह आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी द्वारा संकलित है और हमें व्हाट्सप समूह से प्राप्त हुआ है। यहां उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है जिन शीर्षकों के साथ जो साझा किया गया था वो यथावत प्रस्तुत किया गया है। यह आलेख उन सबके लिये अति-उपयोगी है जो आस्थावान सनातनी है और नरक (दुःखों) से बचना चाहते हैं।

ब्रह्महत्यासमपातकानि (ब्रह्महत्या के समान पाप)
- मनु का मत : अनृतं च समुत्कर्षे राजगामि च पैशुनम्। गुरोश्चालीकनिर्बन्धस्समानि ब्रह्महत्यया॥
शब्दार्थ :
- अनृतं समुत्कर्षे – किसी विशेष प्रयोजन से (लाभ हेतु) झूठ बोलना
- राजगामि पैशुनम् – राजा के पास चुगलखोरी करना (दूसरों के दोष फैलाना)
- गुरोः च आलीकनिर्बन्धः – गुरु पर झूठा आरोप लगाना
इन तीनों कार्यों को मनु ने ब्रह्महत्या के समान पाप कहा है।
- याज्ञवल्क्य का मत :
“गुरूणामध्यधिक्षेपो, वेदनिन्दा, सुहृद्वधः, अधीतस्य च नाशनम्।“
- गुरूणाम् अध्यधिक्षेपः – गुरुजनों को डाँटना, उलाहना देना
- वेदनिन्दा – वेदों की निंदा करना
- सुहृत्वधः – मित्र की हत्या
- अधीतस्य नाशनम् – पढ़े हुए वेद का विस्मरण या नष्ट करना
ये सभी कर्म भी ब्रह्महत्यासम (तुल्य) माने गए हैं।
- गौतम का मत :
कौटसाक्ष्यं, राजगामि पैशुनं, गुरोरनृताभिशंसनं”
- कौटसाक्ष्यं – झूठी साक्षी देना
- गुरोः अनृताभिशंसनम् – गुरु पर झूठा आरोप लगाना
विशेष टिप्पणी (अपस्तम्ब): गौतम के स्मरण में कहा गया है कि दोष को जानकर भी यदि कोई व्यक्ति लोक में किसी पतित व्यक्ति का दोष प्रचार करे, तो वह भी पातकी होता है। दोष का प्रचार गुप्त दोषों के संदर्भ में वर्जित है।
- अन्य स्मृतिकारों के मत :
- नास्तिकता : नास्तिक्याभिनिवेशेन वेदकुत्सनम् – नास्तिक बनकर वेदों की निंदा करना
- सुहृद्वध : ब्राह्मण ही नहीं, किसी सज्जन मित्र का वध भी समान पाप है
- अधीत वेद का नाश : आलस्य, अनुचित शास्त्रों में रमा रहना, आदि के कारण यदि कोई वेद का विस्मरण कर देता है, तो यह भी घोर पाप है।
- पराशर का मत : “विप्रेषु भुञ्जनेषु योऽग्रे पात्रं परित्यजेत्…”
जब ब्राह्मण भोजन कर रहे हों, उस समय कोई व्यक्ति पहले पात्र का त्याग करता है या नियम तोड़ता है, तो वह भी ब्रह्मघ्न (ब्रह्महत्या करने वाला) कहलाता है।
- विष्णुधर्मोत्तर : “विद्याभिमानेन नीचो जयति सद्विजम्…”
- कोई निम्न व्यक्ति यदि विद्या के घमंड में ब्राह्मण को सभा में हराए, तो वह ब्रह्महत्या कहा गया है।
- परदोष का अविज्ञात होकर राजा को बताना (बिना पुष्टि के चुगली) – ब्रह्महत्या तुल्य है।
- देव या ब्राह्मण को समर्पित भूमि का हरण, भले वह भूखंड प्राचीन या लुप्त हो, फिर भी ब्रह्महत्या समान पाप है।
- विष्णु पुराण के विशेष प्रसंग : यज्ञस्थ क्षत्रिय, वैश्य, रजस्वला, आत्रिगोत्रजा, अविज्ञातगर्भ, शरणागत का वध – ब्रह्महत्यासमम्।
यदि कोई व्यक्ति यज्ञ में प्रवृत्त क्षत्रिय या वैश्य, रजस्वला स्त्री, अत्रिगोत्र की स्त्री, शरण में आए व्यक्ति, या अज्ञात गर्भ वाली स्त्री की हत्या करता है – तो वह ब्रह्महत्या तुल्य पाप करता है।
सारांशतः
पाप/कर्म ब्रह्महत्या-समान
- झूठ बोलना (स्वार्थ हेतु) न्याय-विरोध
- गुरु पर झूठा आरोप गुरु का अनादर
- वेद की निंदा धर्म की जड़ पर आघात
- मित्र की हत्या विश्वासघात
- अधीत वेद का विस्मरण आत्मिक ज्ञान का त्याग
- सभा में ब्राह्मण का अपमान धर्मसभा का अपमान
- चुगली, झूठी गवाही सामाजिक विष फैलाना
- यज्ञस्थ व्यक्ति या गर्भिणी का वध यज्ञ/जीवन का नाश
- ब्राह्मण या देव भूमि का हरण धर्मविहित दान का अपमान
हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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