सनातन विरोधी के द्रोह का कारण दुराचार की स्वतंत्रता नहीं; अति पाप – ati paap

सनातन विरोधी के द्रोह का कारण दुराचार की स्वतंत्रता नहीं; अति पाप - ati paap

पूर्व आलेख में महापातक संबंधी व्यापक चर्चा सप्रमाण की जा चुकी है और अब इस आलेख में अतिपातक (अति पाप – ati paap) की चर्चा सप्रमाण करेंगे और समझने का प्रयास करेंगे। यहां एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी स्पष्ट होता है कि सनातन विरोधी जो धर्म और धर्म शास्त्रों का विरोध करते हैं उसका क्या कारण है। वास्तव में जो अधर्मी हैं वो दुराचरण की स्वछंदता चाहते हैं किन्तु सनातन सदाचरण का ज्ञान देता है और यदि धर्म शास्त्रों का सम्यक अध्ययन करें तो दुराचार पर अंकुश लगेगा जो अधर्मियों के हित में नहीं होगा इसी कारण वो धर्म और धर्मशास्त्रों का विरोध करते हैं जिसका ज्वलंत उदाहरण मनुस्मृति का विरोध है।

अधर्मियों को हर प्रकार की स्वछंदता चाहिये और धर्माचरण करने वाले उनके स्वेच्छाचार में सहभागी नहीं बनते इस कारण मानसिक रूप से धर्म के विरुद्ध नकारात्मक तथ्यों को परोसना अधर्मियों का स्वभाव है। भोगभूमि के अधर्मियों को देवभूमि भारत से यही द्वेष है कि हम उनके अनुगामी क्यों नहीं बनते हैं। यद्यपि वर्त्तमान में बहुत बड़ी संख्या में उनके अनुगामी भी हैं और शहरों में ऐसे लोगों के अत्यधिक संख्या है। उन सबको बस एक कसौटी पर स्वयं का आकलन करना चाहिये कि यदि वो सदाचारी होते तो परिवार, समाज, राष्ट्र का हित होता या अहित ?

उपरोक्त सन्दर्भ में हमें पाप के प्रकारों को भी जानना आवश्यक है जो हमें अतिपातक में संलिप्त होने से बचाता है। यहां जो जानकारी दी गयी है उसके सङ्कलनकर्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं और इस आलेख का श्रेय उन्हीं को जाता है।

आगे जो महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है वह आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी द्वारा संकलित है और हमें व्हाट्सप समूह से प्राप्त हुआ है। यहां उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है जिन शीर्षकों के साथ जो साझा किया गया था वो यथावत प्रस्तुत किया गया है। यह आलेख उन सबके लिये अति-उपयोगी है जो आस्थावान सनातनी है और नरक (दुःखों) से बचना चाहते हैं।

विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी
विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी

अतिपातक

अतिपातकान्याह मनुः : हत्वा गर्भमविज्ञातमेतदेव व्रतं चरेत्। राजन्यवैश्यावीजानावात्रेयीमेव च स्त्रियम् । उक्त्वा चैवानृतं साक्ष्ये प्रतिरुध्य गुरुं तता। अपहृत्य च निक्षेपं कृत्वा च स्त्रीसुहृद्वधं ।

ईजानौ – यागदीक्षामध्यवर्तिनौ, आत्रेयी – अत्रिगोत्रजा । निक्षेपं – ब्राह्मणसंबन्धिनम् । स्त्री – आहिताग्निपत्नी, पातिव्रत्यादिगुणयुक्ता वा । अविज्ञातगर्भहननादीनामतिपातकत्वम्, अतिदिष्टं तु यत्पापमतिपातकमुच्यते । अतिदिष्टेषु सर्वत्र पादोनं तद्व्रतं चरेत् इति बचनादवगम्यते।

  • यमः – मातृस्वसा मातृसखी दुहिता च पितृष्वसा । मातुलानी स्वसा श्वश्रूत्वा सद्यः पतेद्विजः इति ।
  • गौतमः – मातृपितृयोनि – सम्बन्धागस्तेननास्तिकनिन्दितकर्माभ्यासि पतितात्याग्य – पतितत्यागिनः पतिताः पातकसंयोजकाच इति ।
  • बोधायनोऽपि – अथ पतनीयानि । समुद्रयानं ब्रह्मस्वन्यासापहरणं -भूम्यनृतवदनं सर्वापयैर्व्यवहरणं शूद्रसेवनं शूद्राभिगमनं यश्च शूद्रायामभिजायते तदपत्यं च भवति इति

1 – मनु द्वारा वर्णित अतिपातक

“हत्वा गर्भमविज्ञातम् एतदेव व्रतं चरेत्…” – मनु ने कुछ विशेष अपराधों को अतिपातक (महापातक से भी अधिक गंभीर) कहा है। ये ऐसे कार्य हैं जिनके करने से व्यक्ति धार्मिक दृष्टि से पूर्णतः पतित हो जाता है। ये इस प्रकार हैं:

  1. गर्भहत्या, विशेषकर ऐसा गर्भ जो अभी लोगों को ज्ञात नहीं था (गुप्त रूप से नष्ट किया गया भ्रूण)। यह स्त्री की गर्भावस्था में भ्रूणहत्या जैसा है, जो अति निंदनीय है।
  2. ब्राह्मण पुरुष द्वारा क्षत्रिय, वैश्य या आत्रेयी (अत्रिगोत्रजा) स्त्री से संबंध – वर्णसंकर को रोकने हेतु ब्राह्मण को विशिष्ट स्त्रियों से संबंध वर्जित माना गया।
  3. यज्ञदीक्षा में प्रवृत्त स्त्री या पुरुष से संबंध – यह धार्मिक अनुष्ठान का अपमान है।
  4. झूठी साक्षी देना – न्याय प्रक्रिया को दूषित करने वाला कार्य।
  5. गुरु (पिता, आचार्य) के विरुद्ध आचरण – जैसे उन्हें अपमानित करना, उनका अपकार करना।
  6. ब्राह्मण की धरोहर, संपदा अमानत की चोरी – ब्राह्मण का धन विशेष रूप से धर्मार्जित होता है, उसकी चोरी अति निंदनीय है।
  7. सती स्त्री या पातिव्रता स्त्री की हत्या – जिसका चरित्र श्रेष्ठ हो, उसका वध अत्यंत अधर्म।
  8. मित्र की हत्या – विश्वासघात की चरम सीमा।

प्रायश्चित्त: – इन पापों के लिए प्रायश्चित्त करने हेतु विशेष व्रत का विधान है, जिसे “एतदेव व्रतं चरेत्” कहा गया है।

2 – यम का मत

मातृस्वसा, मातृसखी, दुहिता च, पितृष्वसा, मातुलानी, स्वसा, श्वश्रूत्वा — सद्यः पतेद्विजः।…” – धर्मशास्त्रकार यमके अनुसार, निम्नलिखित स्त्रियों से किसी प्रकार का यौन या विवाह संबंध ब्राह्मण को तुरंत पतित कर देता है:

    1. मातृस्वसा – मां की बहन
    2. मातृसखी – मां की सखी
    3. दुहिता – अपनी पुत्री
    4. पितृष्वसा – पिता की बहन
    5. मातुलानी – मामा की पत्नी
    6. स्वसा – अपनी बहन
    7. श्वश्रू – पत्नी की मां

    यह सभी स्त्रियाँ नित्यबन्धु (रक्त या विवाहित सम्बन्ध से जुड़ी) हैं, इनसे संबंध घोर अनाचार है।

    3 – गौतम का मत

    श्लोकांश : “मातृपितृयोनिसम्बन्ध, अगस्तेन, नास्तिकनिन्दितकर्माभ्यासि, पतितात्यागी, पतितत्यागिनः पतिताः…” – गौतम ऋषि ने पतनकारक कारणों को विस्तार से बताया है:

    • मातृ-पितृ योनिसम्बन्ध – अपने ही रक्तसम्बन्धी से अवैध संबंध (जैसे चाची, मौसी, मामी आदि)।
    • नास्तिकता – वेदों को अस्वीकार करने वाला।
    • निन्दित कर्मों का अभ्यास – जैसे चोरी, छल, हिंसा आदि।
    • पतितों का संग और पतितों को अपनाना – जो स्वयं घोर पापी है और जो ऐसे पापियों के साथ मिलकर रहता है, वह भी पतित हो जाता है।

    निष्कर्ष : पतन केवल अपने कर्मों से ही नहीं, पापियों के संग से भी होता है।

    4 – बोधायन का मत

    श्लोकांश : “समुद्रयानं, ब्रह्मस्वन्यासापहरणं, भूम्यनृतवदनं, शूद्रसेवनं, शूद्राभिगमनं, यश्च शूद्रायामभिजायते तदपत्यं…” – बौधायन ने कुछ ऐसे कार्यों को बताया है जिन्हें करने वाला ब्राह्मण पतन को प्राप्त होता है:

    • समुद्र यात्रा – प्राचीन समय में समुद्र पार करना धर्मशास्त्रों में निषिद्ध था, क्योंकि इससे विदेशी संपर्क होता था और आचरण भ्रष्ट होता था।
    • ब्राह्मण की अमानत (न्यास) की चोरी – अत्यन्त पापपूर्ण।
    • भूमि पर झूठ बोलना – विशेष रूप से किसी न्यायिक साक्ष्य या भूमि विवाद में।
    • शूद्र सेवा – शूद्र की सेवा
    • शूद्र स्त्री से संबंध – वर्ण संकर का कारण।
    • शूद्र स्त्री से उत्पन्न संतान – वह भी पतनीय होती है; ब्राह्मण कुल की संतान नहीं मानी जाती।

    समाहार /सारांशत:

    श्रेणीउदाहरणदोष
    अतिपातकभ्रूणहत्या, गुरु अपमान, झूठी साक्षी, सती वध घोर पापविशेष प्रायश्चित्त आवश्यक
    पतनीयशूद्रगमन, समुद्र यात्रा, ब्राह्मण की चोरीपतन का कारण
    संबन्ध वर्जनमाता की बहन, पुत्री, बहन आदि रक्त सम्बन्ध सेअनाचार

    अतिपातक – २

    नारदः –

    माता मातृष्वसा श्रर्मातुलानी पितृष्वसा । पितृव्यसखिशिष्यस्त्री भगिनी तत्सखी स्नुषा ॥
    दुहिताऽऽचार्य भार्या च सगोत्रा शरणागता । राज्ञी प्रव्रजिता साध्वी धात्री वर्णोत्तमा च या ॥
    आसामन्यतमां गच्छन् गुरुतल्पग उच्यते । आश्रितां विदुषः पत्नीमाहिताग्रेश्च योगिनः ॥
    एषां पत्नीं स्वपौत्रीं च गत्वा तल्पव्रतं चरेत् । चण्डाल्यां गर्भमाधाय गुरुतल्पव्रतं चरेत् ॥

    अत्र माता मातृसपत्नी

    भविष्यत्पुराणेऽपि अग्निहोत्रार्थकपिलां हत्वा ब्रह्महजो व्रतम् ।
    दुस्थितं सुस्थितं वाऽपि शिवलिङ्गं न चालयेत् ॥
    अन्यथा तु कृते लिङ्गे अतिपातकमाप्नुयात् ।
    उत्तमानां चामराणामन्यथाकरणे सति ॥
    विप्रस्यैव व्रतं कुर्याद्विप्रदेवौ समौ स्मृतौ ।
    गर्भिण्युदक्याविज्ञाताः कन्यामार्तामनिच्छतीम् ॥
    गुरुतल्पं चरेद्गत्वा गामयोनिं सखिस्त्रियम् ॥

    याज्ञवल्क्य – नीचाभिगमनं गर्भघातनं भर्तृनाशनम्। विशेषपतनीयानि स्त्रीणामेतान्यपि ध्रुवम् ॥

    व्याघ्रः – अतिदेशस्योपदेशन्यूनत्वात्तद्व्रतं न हि । अतिदिष्टेषु सर्वत्र पादोनं तद्धतं चरेत् इति ॥
    एवं महापातकातिदेशेऽन्यान्यप्यतिपातकानि द्रष्टव्यानि ।

    1. नारद का मत (नारदः):

    माता, मातृष्वसा, श्वश्रूर्मातुलानी, पितृष्वसा। पितृव्यसखिशिष्यस्त्री, भगिनी, तत्सखी, स्नुषा॥
    दुहिता, आचार्यभार्या च, सगोत्रा, शरणागता। राज्ञी, प्रव्रजिता, साध्वी, धात्री, वर्णोत्तमा च या॥

    भावार्थ : गुरुस्त्री (गुरु की पत्नी) के रूप में निम्नलिखित स्त्रियाँ मानी जाती हैं:

    • माता – अपनी मां
    • मातृष्वसा – मां की बहन
    • मातुलानी – मामा की पत्नी
    • पितृष्वसा – पिता की बहन
    • पितृव्यसखिशिष्यस्त्री – चाचा के मित्र या गुरु के शिष्य की पत्नी
    • भगिनी – अपनी बहन
    • तत्सखी – बहन की सखी
    • स्रुषा – बहनोई की स्त्री
    • दुहिता – अपनी कन्या
    • आचार्यभार्या – आचार्य (गुरु) की पत्नी
    • सगोत्रा – एक ही गोत्र की स्त्री
    • शरणागता – शरण में आई स्त्री
    • राज्ञी – रानी
    • प्रव्रजिता – सन्यासिनी
    • साध्वी – संयमी स्त्री
    • धात्री – धात्री स्त्री (दूध पिलाने वाली)
    • वर्णोत्तमा च या – उच्च वर्ण की स्त्री

    इनमें से किसी एक से भी संबंध बनाना गुरुतल्पग (गुरुस्त्रीगामी) पाप कहलाता है।

    आश्रितां विदुषः पत्नीमाहिताग्नेश्च योगिनः। एषां पत्नीं स्वपौत्रीं च गत्वा तल्पव्रतं चरेत्॥

    विद्वान (विद्वान ब्राह्मण), आहिताग्नि (यज्ञीय अग्नि धारण करने वाले), तथा योगी की पत्नी – यदि इनसे संबंध बनाए, या स्वपौत्री (अपनी पोती) से संबंध करे, तो गुरुतल्प व्रत (भारी प्रायश्चित्त) करना चाहिए।

    चण्डाल्यां गर्भमाधाय गुरुतल्पव्रतं चरेत् – यदि कोई चण्डाल स्त्री (अत्यन्त नीच जाति) में गर्भ स्थापित करता है, तो उसे भी गुरुतल्प व्रत करना चाहिए (अत्यन्त घोर पाप है)।

    1. भविष्यपुराण से:

    अग्निहोत्रार्थकपिलां हत्वा ब्रह्महजो व्रतम्। दुस्थितं सुस्थितं वापि शिवलिङ्गं न चालयेत्॥
    अन्यथा तु कृते लिङ्गे अतिपातकमाप्नुयात्॥

    यदि कोई अग्निहोत्र हेतु रखी गई कपिला गाय (गर्भिणी गाय) की हत्या करता है, तो वह ब्राह्महत्याज (ब्रह्म हत्या करने वाला) बनता है और उसे वैसा व्रत करना चाहिए।

    शिवलिङ्ग, चाहे अच्छी अवस्था में हो या खण्डित, उसे स्थल से हटाना नहीं चाहिए। यदि वह जबरन हटाया जाता है, तो यह अतिपातक पाप होता है।

    उत्तमानां चामराणां अन्यथाकरणे सति। विप्रस्यैव व्रतं कुर्याद् विप्रदेवौ समौ स्मृतौ॥

    श्रेष्ठ चामर (पंखा/ध्वजा) आदि का गलत उपयोग किया जाए तो, ऐसा पाप करने वाले को ब्राह्मण के समान व्रत करना चाहिए, क्योंकि ब्राह्मण और देवता समान माने जाते हैं।

    गर्भिण्युदक्याविज्ञाताः कन्यामार्तामनिच्छतीम्। गुरुतल्पं चरेद्गत्वा गामयोनिं सखिस्त्रियम्॥

    निम्न स्त्रियों के साथ संभोग करके गुरुतल्प पाप होता है:

    • गर्भिणी स्त्री
    • उदकी (जिसका मासिक धर्म बंद हो गया हो)
    • अविज्ञाता (अज्ञात स्त्री)
    • कन्या (अविवाहित बालिका)
    • आर्त्ता (रजस्वला)
    • अनिच्छती (जो इच्छुक न हो – बलात्कार)
    • गौ योनि (पशु से संबंध)
    • सखि स्त्री (मित्र की पत्नी या सखी)
    1. याज्ञवल्क्य का मत :

    नीचाभिगमनं, गर्भघातनं, भर्तृनाशनम्। विशेषपतनीयानि स्त्रीणामेतान्यपि ध्रुवम्॥

    स्त्रियों के लिए विशेष रूप से पतनीय (पतन का कारण) हैं:

    • नीच जाति के पुरुष से संबंध
    • गर्भपात कराना
    • पति का नाश करना (प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से)
    • ये सभी दोष उन्हें ध्रुव (निश्चित) रूप से पतन के योग्य बनाते हैं।
    1. व्याघ्र का मत:

    अतिदेशस्योपदेशन्यूनत्वात्तद्व्रतं न हि। अतिदिष्टेषु सर्वत्र पादोनं तद्धतं चरेत्॥

    अतिदेश (अतिरिक्त पाप) में पूर्ण व्रत आवश्यक नहीं होता, क्योंकि वह मुख्य पाप से कुछ कम (न्यून) होता है। अतः सभी अतिदिष्ट पापों के लिए “पादोनं व्रत” (मुख्य प्रायश्चित्त से एक चौथाई कम) व्रत किया जाए।

    सारांशतः

    पाप/अपराधप्रकारव्रत/प्रायश्चित्त
    गुरु से संबंधित स्त्रियों से संबंधगुरुतल्पगगुरुतल्पव्रत
    चाण्डाल स्त्री में गर्भगुरुतल्पगगुरुतल्पव्रत
    शिवलिङ्ग को हटानाअतिपातकमहाव्रत
    स्त्री द्वारा गर्भपात, पति की हत्याविशेष पतनीयकठोर प्रायश्चित्त

    हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।

    कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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