स्त्री धर्म को समझें गृह व्यवस्था व अतिथि सत्कार | stri dharm – 7

स्त्री धर्म को समझें गृह व्यवस्था व अतिथि सत्कार | stri dharm - 7

स्त्री धर्म पद्धति (stri dharm) प्रकरण के सप्तम भाग में थोड़ी धनव्यय-संग्रह संबंधी चर्चा के साथ वैश्वदेव, धार्मिक कृत्य, अतिथि सेवा आदि से संबंधित चर्चा की गयी है। यहां यह स्पष्ट किया गया है कि गृहसंचालन के निमित्त जो धन दिया जाय उसमें से बचाकर संग्रह करे किन्तु धर्माचरण के निमित्त जो धन प्रदान किया जाय उसमें से न बचाये। कितनी बड़ी बात है कि परिवार में बजट तक का प्रावधान मिलता है और वित्तीय कार्य पूर्णतः पत्नी के अधिकार क्षेत्र में सिद्ध होता है। यहां मनुस्मृति में नारी के साथ कैसा अत्याचार है। ये विचारणीय विषय है कि मनुस्मृति को नारी विरोधी कहा जाता है और ऐसे विषयों की कोई चर्चा नहीं होती।

वित्तीय कार्य के अतिरिक्त धर्माचरण आता है और धर्माचरण में धन बचाने का निषेध तो किया गया है साथ ही यह भी बताया गया है कि पति कहे अथवा न कहे तो भी पूजा के उपकरण आदि की व्यवस्था, नैवेद्य व्यवस्था आदि पत्नी ही करे। अतिथि सेवा का सनातन में विशेष महत्व है और अतिथि को देवता कहा गया है।

परपुरुष सम्भाषण का तो निषेध है किन्तु आवश्यकता में पति आदि की उपस्थिति में वार्तालाप किया जा सकता है अथवा ओट करके किया जा सकता है। किन्तु समागत अतिथि सत्कार में यदि पति न हो तो भी निषेध नहीं है। पति की अनुपस्थिति में भी अतिथि सत्कार करना ही चाहिये क्योंकि जिसके घर से अतिथि निराश होकर लौटता है उसके पुण्य को ग्रहण कर लेता है और अतिथि का पाप गृहस्वामी को लगता है।

सामान्यतः पुरुषों के लिये धर्म, कर्म, मर्यादा, आचरण आदि शास्त्रों में सर्वत्र भरे-परे हैं किन्तु स्त्रियों के लिये नहीं हैं ऐसा नहीं है। स्त्रियों के लिये भी कर्तव्याकर्तव्य का शास्त्रों में निर्धारण किया गया है और जो भी आध्यात्मिक चर्चा करते हैं उनके लिये स्त्रियों के धर्म, कर्म, मर्यादा, आचरण आदि की चर्चा भी आवश्यक है। यदि चर्चा ही नहीं करेंगे तो आधुनिकता के नाम पर दुर्गंध ही फैलता रहेगा।

यहां स्त्री धर्म से संबंधित शास्त्रोक्त चर्चा की गयी है जिसके संकलनकर्त्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं एवं हम उनका आभार प्रकट करते हैं। यह आलेख कई भागों में है एवं आगे अन्य लेख भी आ सकते हैं, यहां सप्तम भाग दिया गया है।

आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी
आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी जी

गृह व्यवस्था व अतिथि सत्कार

गृहकृत्य हेतु द्रव्य का प्रयोग : पति द्वारा जो द्रव्य पत्नी को गृहव्यय के लिए दिया जाए, उससे पत्नी यथाशक्ति गृहकृत्य पूर्ण करे और थोड़ा अवशेष बचा ले। परन्तु धर्मकार्यों (दानादि) के लिए जो द्रव्य दिया जाए, उसमें लोभवश कुछ भी बचाकर न रखे –“गृहकृत्यार्थ दत्तेन द्रव्येण पत्नी यथा कथंचिद्गृहकृत्यं निर्वर्त्य किंचिदवशेषयेत् । धर्मार्थं दत्तं तु द्रव्यं लोभेन नावशेषयेत् ॥”

मनु भी यही कहते हैं —
गृहव्ययाय यद्द्रव्यं दिशेत्पत्त्रया: करे पतिः ।
निर्वर्त्य गृहकार्य सा किंचिद्बुद्ध्याऽवशेषयेत् ॥
दानार्थमर्पिते द्रव्ये लोभात्किंचिन्न धारयेत् ॥

देवपूजा और गृहसामग्री की व्यवस्था : पति देवपूजा कर रहा हो, तब उसके लिए आवश्यक सभी उपकरणों और उपकरणों की व्यवस्था पत्नी स्वयं करे, चाहे पति ने स्पष्ट रूप से कहा हो या न कहा हो – “भर्त्रा क्रियमाणदेवपूजायां तदुपयुक्तमुपकरणादिकमनुक्तथा स्वमेव सर्वं साधनीयम्”

वैश्वदेव में पत्नी की भूमिका : व्यास कहते हैं कि नैवेद्य के लिए पृथक् पात्र में भोजन पकाना चाहिए। पत्नी को स्नान करके नैवेद्य अलग और वैश्वदेव हेतु व्यञ्जन अलग-अलग पकाने चाहिए।

नैवेद्यार्थ पृथग्भाण्डे पत्नी स्नात्वा पचेत्सदा ।
वैश्वदेवार्थमन्यस्मिन् व्यञ्जनानि पृथक् पृथक् ॥

वैश्वदेव के समय पत्नी का सन्निहित रहना अनिवार्य है। नारायण स्मृति में कहा गया है —

सभार्यस्तु शुचिस्त्रातो विधिनाऽऽचम्य वाग्यतः ।
उपविश्य समिद्धेऽग्नौ वैश्वदेवं समाचरेत् ॥

पत्नी को वैश्वदेव के अवसर पर बल्यायतन (देवतास्थान) को गन्ध, पुष्प आदि से सजाना चाहिए – “तूष्णीं सर्वाण्यायतनानि गन्धपुष्पधूपदीपैः पत्न्यलङ्करोति” — बोधायन

अतिथि का पूजन : वैश्वदेव के पश्चात् आने वाला अतिथि पूजनीय है। आपस्तम्ब कहते हैं कि उचित समय पर यदि स्वामी (पति) अनुपलब्ध हो, तो भी पत्नी को अन्न चाहने वाले अतिथि को कभी भी मना नहीं करना चाहिए – “काले स्वामिनोऽन्नार्थिनं न प्रत्याचक्षीयाताम्” — आपस्तम्ब

व्यास भी कहते हैं कि पत्नी को पूजोपकरण जैसे पत्र, पुष्प, अक्षत आदि स्वयं समय पर जुटाकर प्रस्तुत करना चाहिए।

पूजोपकरणं सर्वमनुक्तं साधयेत्स्वयम् ।
नियमोदकबर्हिषि पत्रपुष्पाक्षतादिकम् ॥

अतिथि-सत्कार का महत्व : विष्णुपुराण में ऋभु-निदाघ संवाद में बताया गया है कि पत्नी को अपने पति के वचनों का सम्मान करते हुए अतिथि के लिए स्वादिष्ट भोजन सजाना चाहिए।

हे शालिनि मद्रेहे यत्किचिदतिशोभनम् ।
भक्ष्योपसाधनं सर्व तेनास्यानं प्रसाधय ॥
इत्युक्ता तेन सा पत्नी मृष्टमन्नं द्विजस्य यत् ।
प्रसाधितवती तद्वै भर्तुर्वचनगौरवात् ॥

अतिथ्य का अनादर और उसका दोष : कठवल्ली उपनिषद् में नचिकेता का उदाहरण दिया गया है। उसके पिता ने यज्ञ में दुग्धहीन गौएँ दान स्वरूप दीं। नचिकेता ने पितृदोष की शंका से बार-बार पूछा कि किसे मुझे दान करेंगे। क्रोधवश पिता ने उसे मृत्यु को दान दे दिया। अतः कहा गया — जो अतिथि का अनादर करता है, उसके लिए अनन्तलोक की प्राप्ति नहीं होती।

वैश्वानरः प्रविशत्यतिथिर्ब्राह्मणो गृहान् ।
तस्यैतां शान्तिं कुर्वन्ति हर वैवस्वतोदकम् ॥

अतिथि के अनादर का दुष्परिणाम : बोधायन कहते हैं —
यो मामदत्वा पितृदेवताभ्यो भृत्यातिथीनां च सुहृज्जनस्य ।
संपन्नमश्नन् विषमत्ति मोहात्तमद्म्यहं तस्य च मृत्युरस्मि॥

अतिथि का सत्कार यज्ञ के तुल्य : आपस्तम्ब उद्धृत ब्राह्मण वचन के अनुसार — गृहस्थ का नित्य यज्ञ है — अतिथि का सत्कार। घर ही यज्ञशाला है, अतिथि ही आहवनीय अग्नि है, गृहपति ही गार्हपत्य अग्नि है। अतिथि का भोजन ही सोमयाग के तुल्य है। अतिथि की तृप्ति से पुत्र, पशु, प्रजा, आयु और समृद्धि प्राप्त होती है – “स एष प्राजापत्यः कुटुम्बिनो यज्ञो नित्यप्रततः, योऽतिथीना मग्निः स आहवनीयो, यः कुटुम्बे स गार्हपत्यः… प्रिया अप्रियाश्चातिथयः स्वर्गलोकं गमयन्ति” — आपस्तम्बोदाहृत ब्राह्मण

मनु का निर्देश : मनुस्मृति कहती है कि वैश्वदेव के बाद ही अतिथि का सत्कार करना चाहिए। अतिथि को आसन, जल और अन्न देकर विधिपूर्वक सत्कार करना चाहिए।

कृत्वैतत् बलिकर्मैव मतिथिं पूर्वमाशयेत् ।
संप्राप्ताय त्वतिथये प्रदद्यादासनोदके ॥
अन्नं चैव यथाशक्ति सत्कृत्य विधिपूर्वकम् ॥

यदि अतिथि असंतुष्ट होकर भूखा लौटता है, तो गृहस्थ का पुण्य नष्ट होकर उसका पाप गृहपति पर चढ़ जाता है।

अतिथिर्यस्य भग्नाशो गृहात्प्रतिनिवर्तते ।
स दत्वा दुष्कृतं तस्य पुण्यमादाय गच्छति ॥

क्रमशः…..

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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