गुरुतल्पगमन महापातक में आता है और यह हम प्रथम ही जान चुके हैं आगे गुरुतल्पगमन के समान अन्य पापों को भी समझना आवश्यक हो जाता है क्योंकि अन्य सभी वर्णन महापातक में ही हो जाये यह आवश्यक नहीं, महापातकों में प्रमुख का वर्णन करके शेष को प्रमुख के समान से भी समझा जा सकता है। गुरुतल्पगमन के समान पाप कहने का तात्पर्य है कि वो पाप जो गुरुतल्पगमन के समान ही है भले ही उसका महापाप में वर्णन मिले अथवा न मिले किन्तु उसे महापाप ही जानना चाहिये। यहां हम गुरुतल्पगमन सम पापों को समझने का प्रयास करेंगे।
गुरुतल्पगमन के समान पातक/महापाप – gurutalpgamansam
उपरोक्त सन्दर्भ में हमें गुरुतल्पगमन के समान पापों को भी जानना आवश्यक है जो हमें संलिप्त होने से बचाता है। यहां जो जानकारी दी गयी है उसके सङ्कलनकर्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं और इस आलेख का श्रेय उन्हीं को जाता है।
आगे जो महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है वह आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी द्वारा संकलित है और हमें व्हाट्सप समूह से प्राप्त हुआ है। यहां उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है जिन शीर्षकों के साथ जो साझा किया गया था वो यथावत प्रस्तुत किया गया है। यह आलेख उन सबके लिये अति-उपयोगी है जो आस्थावान सनातनी है और नरक (दुःखों) से बचना चाहते हैं।

गुरुतल्प समपातकानि – (गुरुतल्पगमन के समान पातक/महापाप)
मनु स्मृतिः – रेतस्सेकः स्वयोनीषु कुमारीष्वन्त्यजासु च । सख्युः पुत्रस्य च स्त्रीषु गुरुतल्पसमं विदुः॥
- स्वयोनीषु — अपनी बहन आदि स्त्रियों में
- कुमारीषु — अविवाहित कन्याओं में
- अन्त्यजासु — नीच कुल की स्त्रियों में
- सख्युः पुत्रस्य च स्त्रीषु — मित्र के पुत्र की पत्नी में
इनके साथ संभोग करना गुरुतल्पगमन के समान महापाप माना गया है।
याज्ञवल्क्य स्मृतिः – सखिभार्या कुमारीषु स्वयोनिष्वन्त्यजातिषु । सगोत्रासु सुतस्त्रीषु गुरुतल्पसमं स्मृतम्॥
मित्र की पत्नी, अविवाहित कन्या, अपनी बहन, नीच जाति की स्त्री, अपने ही गोत्र की स्त्री, पुत्र की पत्नी इन सबके साथ संबंध स्थापित करना गुरुतल्पगमन के बराबर पाप है।
पुराण सार : अपि वा मातरं गच्छेन्न गच्छेद्देवदारिकाम्। यदि गच्छेत् प्रमादेन गुरुदारसमं स्मृतम्॥
कोई व्यक्ति यदि भूलवश भी देवदारिका (देवदासी या मंदिर की कन्या) से संबंध बनाता है, तो यह अपनी माँ से संबंध बनाने के समान और गुरुतल्पगमन के तुल्य महापाप कहा गया है।
विष्णु धर्मसूत्र :
गुरुतल्पगमन के समान पाप माने गए हैं-
- पितृव्य (पिता का भाई), मातामह (नाना), मातुल (मामा), श्वशुर (ससुर), राजा आदि की पत्नी के साथ संबंध
- पितृस्वसा (बुआ), मातृस्वसा (मौसी) से संबंध
- श्रोत्रिय (वेदपाठी), ऋत्विज (यज्ञकर्ता), उपाध्याय (शिक्षक), मित्र की पत्नी से संबंध
- अपनी बहन, मित्र की बहन, अपने गोत्र की कन्या
- ऊँची जाति की कन्या, रजस्वला स्त्री, शरण में आई स्त्री, सन्यासिनी स्त्री, तथा किसी की रखी हुई (निक्षिप्ता) स्त्री से संबंध भी गुरुतल्पगमन के समान महापाप कहलाते हैं।
हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।
कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।
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