सोने की चोरी के समान पातक – sone ki chori

सोने की चोरी के समान पातक - sone ki chori

स्वर्णस्तेय (सोने की चोरी – sone ki chori) महापातक में आता है और यह हम प्रथम ही जान चुके हैं आगे सोने की चोरी के समान अन्य पापों को भी समझना आवश्यक हो जाता है क्योंकि अन्य सभी वर्णन महापातक में ही हो जाये यह आवश्यक नहीं, महापातकों में प्रमुख का वर्णन करके शेष को प्रमुख के समान से भी समझा जा सकता है। स्वर्णस्तेय के समान पाप कहने का तात्पर्य है कि वो पाप जो स्वर्णस्तेय के समान ही है भले ही उसका महापाप में वर्णन मिले अथवा न मिले किन्तु उसे महापाप ही जानना चाहिये। यहां हम स्वर्णस्तेय सम पापों को समझने का प्रयास करेंगे।

उपरोक्त सन्दर्भ में हमें स्वर्णस्तेय के समान पापों को भी जानना आवश्यक है जो हमें संलिप्त होने से बचाता है। यहां जो जानकारी दी गयी है उसके सङ्कलनकर्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं और इस आलेख का श्रेय उन्हीं को जाता है।

आगे जो महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है वह आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी द्वारा संकलित है और हमें व्हाट्सप समूह से प्राप्त हुआ है। यहां उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है जिन शीर्षकों के साथ जो साझा किया गया था वो यथावत प्रस्तुत किया गया है। यह आलेख उन सबके लिये अति-उपयोगी है जो आस्थावान सनातनी है और नरक (दुःखों) से बचना चाहते हैं।

विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी
विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी

स्वर्णस्तेय समपातकानि – सोने की चोरी के समान पातक (महापाप)

  • मनुः – निक्षेपस्यापहरणं नराश्वरजतस्य – च । भूमिवज्रमणीनां च रुक्मस्तेयसमं स्मृतम् ॥इति ।
  • याज्ञवल्क्यः – अश्वरत्नमनुष्यस्त्रीभूधेनुहरणं तथा । निक्षेपस्य च सर्वं हि स्वर्णस्तेयसमं मतम् ॥
  • विष्णुः – ब्राह्मणभूम्यपहरणं स्वर्णस्तेयसमम् ॥ इति ।
  • हेमाद्रौ – हृत्वा शतपलं ताम्रं स्वर्णस्तेयसमं विदुरिति ।

मनु स्मृति:

  1. निक्षेप (ग्रहण हेतु दी गई वस्तु) की चोरी
  2. मनुष्य, अश्व (घोड़ा), रजत (चांदी) की चोरी
  3. भूमि, वज्र (हीरा), मणि, रुक्म (सोना) आदि की चोरी
  4. ये सब स्वर्णस्तेय के समतुल्य पाप माने गए हैं।

याज्ञवल्क्य स्मृति:

  1. अश्व, रत्न, मनुष्य, स्त्री, भूमि, धेनु (गाय) की चोरी
  2. निक्षेप (सौंपा गया धन/वस्तु) की चोरी
  3. यह सब भी स्वर्णस्तेय के बराबर माना गया है।

विष्णु धर्मसूत्र:

ब्राह्मण की भूमि की चोरी को स्वर्णचोरी के समतुल्य कहा गया है।

हेमाद्रि (धर्मसिन्धु आदि से संकलन)

यदि कोई शतपल (लगभग 1.2 किलोग्राम) ताम्र (तांबा) चुराए, तो भी वह स्वर्णचोरी के समान पापी होता है।

हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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