जानिये उन पापों को जो सुरापान के समान है – surapan

जानिये उन पापों को जो सुरापान के समान है - surapan

सुरापान (surapan) महापातक में आता है और यह हम प्रथम ही जान चुके हैं आगे सुरापान के समान अन्य पापों को भी समझना आवश्यक हो जाता है क्योंकि अन्य सभी वर्णन महापातक में ही हो जाये यह आवश्यक नहीं, महापातकों में प्रमुख का वर्णन करके शेष को प्रमुख के समान से भी समझा जा सकता है। सुरापान के समान पाप कहने का तात्पर्य है कि वो पाप जो सुरापान के समान ही है भले ही उसका महापाप में वर्णन मिले अथवा न मिले किन्तु उसे महापाप ही जानना चाहिये। यहां हम सुरापान सम पापों को समझने का प्रयास करेंगे।

उपरोक्त सन्दर्भ में हमें सुरापान के समान पापों को भी जानना आवश्यक है जो हमें संलिप्त होने से बचाता है। यहां जो जानकारी दी गयी है उसके सङ्कलनकर्ता विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी हैं और इस आलेख का श्रेय उन्हीं को जाता है।

आगे जो महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी है वह आचार्य दीनदयालमणि त्रिपाठी द्वारा संकलित है और हमें व्हाट्सप समूह से प्राप्त हुआ है। यहां उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया गया है जिन शीर्षकों के साथ जो साझा किया गया था वो यथावत प्रस्तुत किया गया है। यह आलेख उन सबके लिये अति-उपयोगी है जो आस्थावान सनातनी है और नरक (दुःखों) से बचना चाहते हैं।

विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी
विद्यावारिधि दीनदयालमणि त्रिपाठी जी

सुरापानसमपातकानि – सुरापान के समान पाप कर्म

मनु का मत : ब्रह्मोज्झता वेदनिन्दा कौटसाक्ष्यं सुहृद्वधः। गर्हितानाद्ययोर्जग्धिः सुरपानसमानि षडिति॥

सुरापानसमानि – सुरा (मदिरा) पीने के समान “षडिति” – ये छह माने गए हैं:

  1. ब्रह्मोज्झता – ब्रह्म का त्याग (वेदों का अध्ययन छोड़ देना)
  2. वेदनिन्दा – वेदों की निंदा करना
  3. कौटसाक्ष्यम् – झूठी गवाही देना
  4. सुहृत्-वधः – मित्र की हत्या
  5. गर्हितानाद्ययोः जग्धिः – निन्दित (जैसे लहसुन) तथा अमेध्य (अपवित्र) वस्तुओं का भोजन
  • गर्हित = जैसे लहसुन आदि
  • अनाद्य = अमेध्य (अपवित्र) जैसे माँस, दूषित वस्तुएँ – इनका जान-बूझकर सेवन करना सुरापान के समान पाप है।

याज्ञवल्क्य का मत : निषिद्धभक्षणं जैह्यमुत्कर्षे च वचोऽनृतम्। रजस्वलामुखास्वादः सुरापानसमानि तु इति॥

  1. निषिद्ध-भक्षणम् – निषिद्ध (वर्जित) भोजन करना
  2. जैह्यम् – धूर्तता, छल-कपट
  3. समुत्कर्षे वचः अनृतम् – स्वार्थ के लिए झूठ बोलना
  4. रजस्वलामुख-आस्वादः – रजस्वला स्त्री के मुख का स्पर्श या चुम्बन – ये सभी भी सुरापान के समान पाप माने गए हैं।

स्पष्टीकरण :

  • निषिद्ध भोजन – जैसे लहसुन, प्याज, मांस इत्यादि।
  • जैह्यम् – झूठा कार्य, जैसे दूसरों को दोष देकर अपने को श्रेष्ठ दिखाना।
  • अन्याभिसन्धान, अन्यवादित्व, मन्यकर्तृकत्वम् – दोष का आरोप किसी और पर डाल देना।

स्मृति से उदाहरण :

पलाण्डुं गृञ्जनं चैव मत्या जग्ध्वा पतेत् द्विजः – लहसुन, हरी प्याज आदि को सोच-समझकर खाने से ब्राह्मण पतित होता है।

विशेष झूठ : चतुर्वेदोऽहमिति अनृत भाषणम् – स्वयं को चारों वेदों का ज्ञाता कहकर झूठ बोलना – यह भी पाप है।

स्मृत्यन्तर (अन्य स्मृति) :

नालिकेरोदकं कांस्ये, गोक्षीरं लवणान्वितम्। स्नानं रजकतीर्थेषु, ताम्रे गव्यं सुरासमम्॥

  • नालिकेरोदकं कांस्ये – कांसे के पात्र में नारियल का पानी पीना
  • गोक्षीरं लवणान्वितम् – दूध में नमक मिलाकर पीना
  • रजकतीर्थेषु स्नानम् – धोबी द्वारा उपयोग किए गए जल में स्नान
  • ताम्रे गव्यम् – तांबे के पात्र में गाय का मूत्र पीना – ये सभी क्रियाएँ सुरापान के तुल्य पाप मानी गई हैं।

अत्रि का मत :

तोयं पाणिनखाग्रेषु ब्राह्मणो न पिबेत् कचित्। सुरापानेन तत्तुल्यमित्येवं मनुरब्रवीत्॥

पाणिनखाग्रेषु तोयं – उँगलियों के नाखूनों से जल पीना, ब्राह्मण को यह नहीं करना चाहिए, यह सुरापान के समान पाप है।

शातातप का मत :

उद्धृत्य वामहस्तेन यत् तोयं पिबति द्विजः। सुरापानेन तत्तुल्यं मनुराह प्रजापतिः॥

भावार्थ : वामहस्तेन उद्धृत्य तोयं पिबति – बाएँ हाथ से जल लेकर पीना, यह भी सुरापान के तुल्य पाप है, ऐसा प्रजापति मनु ने कहा।

सुरापान के समान पाप:

पापअर्थ
वेदों का त्यागब्रह्म का परित्याग
वेदनिंदाधर्म की आलोचना
झूठी गवाहीन्याय का अपमान
मित्र की हत्याविश्वासघात
लहसुन/अमेध्य का भोजनवर्जित आहार
रजस्वला के मुख का चुम्बनअशुद्धता का स्पर्श
बाएँ हाथ से जल पीनाअपवित्र आचरण
नारियल जल कांसे में पीनादूषित संयोजन
चातुर्वेद्य का झूठा दावाआत्मप्रशंसा का छल

हम अन्य विद्वद्जनों से भी इसी प्रकार की शास्त्रसम्मत व ज्ञानवर्द्धक संकलन, आलेख की आकांक्षा करते हैं।

कर्मकांड विधि में शास्त्रोक्त प्रमाणों के साथ प्रामाणिक चर्चा की जाती है एवं कई महत्वपूर्ण विषयों की चर्चा पूर्व भी की जा चुकी है। तथापि सनातनद्रोही उचित तथ्य को जनसामान्य तक पहुंचने में अवरोध उत्पन्न करते हैं। एक बड़ा वैश्विक समूह है जो सनातन विरोध की बातों को प्रचारित करता है। अतः जनसामान्य तक उचित बातों को जनसामान्य ही पहुंचा सकता है इसके लिये आपको भी अधिकतम लोगों से साझा करने की आवश्यकता है।


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